शनिवार, 30 नवंबर 2013

भारतीयों के रहन सहन पर चर्चा

एक भारतीय इण्टरनेट फोरम पर जर्मनी में भारतीयों के रहन सहन पर एक चर्चा ने हंगामा खड़ा कर दिया है। जब फोरम में एक भारतीय ने अपना कमरा share करने के लिए एक या दो लोगों की मांग की तो एक जर्मन ने पूछा कि बड़ी कम्पनियों में काम करने और खूब सारा पैसा कमाने के बावजूद भारतीय लोग किराया बचाने के लिए कमरों में ठूंस ठूंस कर क्यों रहते हैं। कई बार इन्हीं कारणों से उन्हें समलैंगिक भी समझा जाता है। भारतीयों ने बचाव के लिए जर्मन संस्कृति पर लांछन लगाने शुरू कर दिए। एक भारतीय ने कहा कि हमारा culture विश्व में सबसे अच्छा है। तुम्हारे culture में लोग बिना शादी के सालों साल इकट्ठे रह लेते हैं। समलैंगिकता को तुमने वैध बना दिया है। इसपर जब जर्मन ने कहा कि अगर इसी तरह रहना है और हमारे culture से इतनी ही तकलीफ़ है तो भारत जाकर क्यों नहीं रहते, यहां क्या कर रहे हो? तो एक अन्य भारतीय ने कहा कि हम यहां तुम्हारी मां बहनों को बच्चे पैदा करने आए हैं। हालांकि भारतीयों के ये दोनों तर्क विरोधाभासी हैं। एक ओर वे बिना शादी के सह-जीवन को संस्कृति के विरुद्ध मानते हैं, दूसरी ओर कहते हैं कि हम यहां बच्चे पैदा करने आए हैं। भारतीयों द्वारा समलैंगिकता का तर्क भी गलत है, क्योंकि पुराने वेदों और शास्त्रों में भी समलैंगिकता का उल्लेख है। और हाल ही में भारतीय उच्च न्यायालय ने समलैंगिकता को decriminalise कर दिया है। कुछ भारतीयों का मानना है कि लोगों खुले फोरम में कुछ लिखते समय ध्यान रखना चाहिए, और फोरम के मॉडरेटर को भी ऐसी बेहूदा टिप्पणियां तुरन्त हटा देनी चाहिए।

म्युनिक से Christine Liedl, जिनके पति भी भारतीय हैं, कहती हैं कि जर्मन और भारतीय मानसिकता में एक बड़ा अन्तर है अपनी निजी जगह। अगर कुछ जर्मन एकल लोग एक apartment share कर रहे हों, तो भी हर कोई अलग कमरे में रहता है। परिवारों में बच्चों को भी बचपन से ही अलग कमरे में सुलाया जाता है। जबकि संयुक्त परिवारों के कारण भारतीय लोगों को शुरू से ही इकट्ठे और साथ रहने की आदत होती है। मैं जब भारत के हरियाणा में अपने पति के परिवार में गई तो मुझे उसके भाई की पत्नी के साथ बिस्तर में सोना पड़ा। उसका पति किसी अलग कमरे में चला गया। हालांकि वहां drawing room में भी बिस्तर लगाया जा सकता था। हालांकि पैसा बचाना, खासकर म्युनिक जैसे शहर में जहां किराए आसमान को छू रहे हैं, भी महत्वपूर्ण है, पर केवल धन बचाना ही एक कारण नहीं है। एक भारतीय लेखक 'सुधीर कक्कड़' ने भारतीय मानसिकता पर बहुत अच्छी पुस्तक लिखी है 'हम हिन्दुस्तानी'। मूल रूप से यह अंग्रेज़ी में प्रकाशित हुई थी। यह जर्मन भाषा में भी प्रकाशित हो चुकी है। इसे पढ़कर भारतीयों के बारे में काफी पूर्वाग्रह दूर हो जाएंगे।