शनिवार, 30 नवंबर 2013

रेमाधव प्रकाशन की हिंदी पुस्तकें

अकेली, मन्नू भंडारी
अधूरी इबारत, हरिपाल त्यागी
अंतयात्रा, कमल कुमार
अपनी छाया, oscar wilde
आइने के सामने, बुद्धदेव गुहा
आकाश चंपा, संजीव
आकाश से झांकता वह चेहरा, कामतानाथ
आगमन, ओमप्रकाश गंगोला
आज या कल या सौ वर्ष बाद, अमृता भारती
आज़ादी की बस्ती, मनोरमा दीवान
इस तरह की बातें, सिम्मी हर्षिता
इस बार, उषा महाजन
इसी देश के इसी शहर में, विभा रानी
ईदगाह, दो बैलों की कथा, प्रेमचंद
एकतारा, तिलोत्तमा मजुमदार
ओ रे मांझी (विमल राय पर विशेष), प्रहलाद अग्रवाल
ओक भर जल, सुनीता जैन
कंकल, तितली, जयशंकर प्रसाद
कंकाल, जयशंकर प्रसाद
कथा समग्र (1-14 भाग), सुनीता जैन
कथा समग्र, दूधनाथ सिंह
कथा समग्र, रामकुमार
कथा समग्र-1, विजयदान देथा
कन्हाई के जगाईबाबा, सत्यजीत रे
कपालकुंडला, देवीचौधरानी, बंकिमचंद्र चटर्जी
कलड़सुंघवा, शरतचंद्र
काला चोर गोरा चोर, सुनील गंगोपाध्याय
काले पन्नों पर लिखी इबारत, राजेंद्र सिंह गहलौत, 100, 65
कुल बारह, सत्यजीत रे, 275, 100
कृपाचार्य, नृसिंहप्रसाद भादुड़ी, 110, -
कृष्णद्वैपायन व्यास, नृसिंहप्रसाद भादुड़ी, 250, 130
कैलास में गोलमाल, सत्यजीत रे, 160, 80
कोयल के निकट, बुद्धदेव गुहा, 250, 175
क्षमा, सुनीता जैन, 100, 65
खव्यबरौ / नादीद, जोगिंदर पाल, 400, 200
खुकी का कारनामा, विणूति बंद्योपाध्याय, -, 55
खेल, अभिषेक कश्यप, 250, 150
गद्दार कौन, सुहैल वड़ाइच, 330, 165
गबन, प्रेमचंद, -, 125
गांधर्व पर्व, सुनीता जैन, 120, 75
गुप्तधन, काबुलीवाला, रवींद्रनाथ ठाकुर, -, 55
गुम होती गौरिया, कुसुम अंसल, 200, 135
गुहार, जयनंदन, 180, 120
गेटकीपर, रमेशचंद्र शाह, 250, 150
गोगोल चिक्कुसः नागाland में, समरेश बसु, 145, -
गोदान, गबन, प्रेमचंद, 650, 350
गोदान, प्रेमचंद, -, 175
घर बने घर टूटे / देर सवेर, राजकुमार, 350, 250
घर से घर तक, उषाकिरण खान, 245, 155
चित्रगुप्त की फाइल, सतीनाथ भादुड़ी, 125, -
चीनी यात्री सुंगयुन, जगमोहन वर्मा, 100, 50
चीनू का चिड़ियाघर, प्रकाश मनु, 65, 30
छत पर दस्तक, मृदुला गर्ग, 280, 170
छांह, मैत्रेयी पुष्पा, 320, 195
जंगल की कहानियां, प्रेमचंद, 95, -
ज़मीन आसमान, जितेंद्र, 200, 100
जय बाबा फेलूनाथ, सत्यजीत रे, 175, 75
जाने लड़की पगली, सुनीता जैन, -, 160
जिजीविषा, लिली रे, 120, 75
जुग बीते जुग आए, पुष्पपाल सिंह, 220, 150
टप्पर गाड़ी, द्रोणवीर कोहली, 245, -
ठग, श्रीपांथ, 250, 100
ताजमहल में एक कप चाय, सुनील गंगोपाध्याय, 225, 75
तितली, जयशंकर प्रसाद, -, 110
तीसरी नाक, भिड़ंत, संजीव, -, 25
दद्दू की कहानियां, रवींद्रनाथ ठाकुर, 80, 40
दूसरे किनारे पर, वल्लभ सिद्धार्थ, 250, 175
देवरानी-जेठानी की कहानी, पंडित गौरी दत्त, 175, 75
दो मुसाफ़िर, बनफूल, 100, 60
द्रोणाचार्य, नृसिंहप्रसाद भादुड़ी, 195, 125
धृतराष्ट्र, नृसिंहप्रसाद भादुड़ी, 155, -
ध्रुवसत्य, द्रोणवीर कोहली, 650, 400
नदी नहा रही थी, सतीश जायसवाल, 220, 150
नष्टनीड़, रवींद्रनाथ ठाकुर, 165, -
नारी का मुक्ति संघर्ष, डॉ॰ अमरनाथ, 300, 200
नीलकान, देवेंद्र कुमार, 130, 70
न्ही गोगो के कारनामे, प्रकाश मनु, 130, 80
पगला दासू, सुकुमार राय, -, 35
पच्चीस साल की लड़की, ममता कालिया, 275, 125
पत्थर अल पत्थर, गर्म राख, उपेंद्रनाथ अश्क, 515, -
परीणिता, पथ के दावेदार, शरतचंद्र चट्टोपाध्याय, 395, -
पाषाणगाथा, हिमांशु जोशी, 195, 125
पीतल का पतीला, मीनाक्षी स्वामी, -, 35
प्रेम कहानियां, महाश्वेता देवी, 350, 175
प्रेम में स्त्री, सुनीता जैन, 200, 75
प्रोफेसर शंकु के कारनामे, सत्यजीत रे, 160, 80
फट जा पंचधार, विद्यासागर नौटियाल, 320, 225
फटिकचंद, सत्यजीत रे, 80, 40
फरार, जफ़र पयामी, 250, 125
फिजीद्वीप में मेरे 21 वर्ष, तोताराम सनाढ्य, 155, -
बंग महिला रचना समग्र, सरदार डॉ॰ भवदेव पांडेय, 360, 180
बड़े भाई साहब, गुल्ली डंडा, प्रेमचंद, -, 45
बारह घंटे, ख्वाजा अहमद अब्बास, 220, -
बुधी की वापसी, विभुति बंद्योपाध्याय, -, 55
ब्राज़ील का काला बाघ, arthur conan doyal, अनुवादः सत्यजीत रे, -, 35
भरी दोपहर के अंधेरे, राकेश कुमार सिंह, 250, 175
भारत में विवाह का इतिहास, अतुल सूर, 150, 95
भारतः नियति और संघर्ष, तरुण विजय, 350, -
भुतही घड़ी, शीर्षेंद्र मुखोपाध्याय, 130, 80
भुलभुलैया, अमर गोस्वामी, 250, 100
मंकूः चांदपुर कि चटाई, सुनीता जैन, -, 55
मंगल पांडे का मुकद्दमा, श्रीपांथ, 180, 100
मटमैली समृति में प्रशांत समुद्र, अनुवादः उद्यन वाजपेयी, 160
मटियाबुर्ज का आखिरी नवाब, श्रीपांथ, 190, 100
महुआ मांदल और अंधेरा, राकेश कुमार सिंह, 250, 175
master अंशुमान, सत्यजीत रे, 80, 40
मिट्टी पर साथ-साथ, अमृता भारती, -, 100
मिथिला, लोकसंस्कृति एवं लोककथाएं, अखिलेश झा, 250, 125
मुक्ति, मुनि क्षमासागर, 500, 300
मुक्तिबोध, विजय, 360, -
मेडल नीलगंज के फालमन, विभुति बंद्योपाध्याय, -, 55
मेरा पहाड़ शेखर जोशी, 195, 110
मेरी प्रिय संपादित कहानियां, अवध नारायण मुद्गल, 350, 100
मेरी प्रिय संपादित कहानियां, कमलेश्वर, 360, 175
मेरी प्रिय संपादित कहानियां, ज्ञानरंजन, 300, 200
मेरी प्रिय संपादित कहानियां, रवींद्र कालिया, 380, 250
मेरी प्रिय संपादित कहानियां, राजेंद्र यादव, 450, 280
मैं तट पर हूं, अमृता भारती, ।, 150
या इसलिए, सुनीता जैन, 250, 150
यूरोप के स्केच, रामकुमार, 375, 225
रंकिणी देवी की तलवार, विभुति बंद्योपाध्याय, -, 45
रहोगी तुम वही, सुधा अरोड़ा, 320, 200
राजमहल का रहस्य, सुनील संगोपाध्याय, 135, -
राजा की बीमारी, सुकुमार राय, -, 30
रात में सागर, चंद्रकांता, 185, -
रानी की सराय, संजीव, -, 95
लंकेश रावण, दीपक चंद्र, 200, 135
लक्षमी का आगमन, बनफूल, 130, 85
लालू, शरतचंद्र, -, 35
वह भयानक रात, शरतचंद्र, 125, 75
वानाचरण का खज़ाना, विभुति बंद्योपाध्याय, -, 35
वारली चित्र संस्कृति, डॉ॰ गोविंद गारे, 150, -
विवर, प्रजापति, समरेश बसु, 315, -
विषय चलचित्र, सत्यजीत रे, 250, 175
शरणागत, समरेश मजुमदार, 200, -
शाम के बाद, बुद्धदेव गुहा, 250, 100
शुरूआत, हृदयेश, 295, -
संत-2, अमृता भारती, 280, -
संसार में निर्मल वर्मा, सरदार गगन गिल, 600, 300
समुद्र, सुबीर दत्त, 175, -
सिंदबाद के सात समुद्री सफर, पंकज चतुर्वेदी, 90, 50
सुंदरवन में सात वर्ष, विभुति बंद्योपाध्याय, 100, 40
सुजन हरबोला, गंगाराम, सत्यजीत रे, -, 55
सुबह से पहले, बुद्धदेव गुहा, 275, 100
सृष्टि एवं प्राणतत्व, अमृता भारती, 400, -
स्कूप, कुलदीप नैयर, 300, 150
स्त्रीling निर्माण, मल्लिका सेनगुप्त, 275, 180
स्वत्व का सम्मोहन, अनुवादः मोहिनी हingोरानी, 600
हरम, श्रीपांथ, 250, 125
हिंदी कहानी का पहला दशक, स. भवदेय पांडेय, 250, 125
हिंदी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, डॉ॰ भवदेव पांडेय, 150, 100
हिट होने के फार्मुले, गिरीश पंकज, 200

भारतीयों के रहन सहन पर चर्चा

एक भारतीय इण्टरनेट फोरम पर जर्मनी में भारतीयों के रहन सहन पर एक चर्चा ने हंगामा खड़ा कर दिया है। जब फोरम में एक भारतीय ने अपना कमरा share करने के लिए एक या दो लोगों की मांग की तो एक जर्मन ने पूछा कि बड़ी कम्पनियों में काम करने और खूब सारा पैसा कमाने के बावजूद भारतीय लोग किराया बचाने के लिए कमरों में ठूंस ठूंस कर क्यों रहते हैं। कई बार इन्हीं कारणों से उन्हें समलैंगिक भी समझा जाता है। भारतीयों ने बचाव के लिए जर्मन संस्कृति पर लांछन लगाने शुरू कर दिए। एक भारतीय ने कहा कि हमारा culture विश्व में सबसे अच्छा है। तुम्हारे culture में लोग बिना शादी के सालों साल इकट्ठे रह लेते हैं। समलैंगिकता को तुमने वैध बना दिया है। इसपर जब जर्मन ने कहा कि अगर इसी तरह रहना है और हमारे culture से इतनी ही तकलीफ़ है तो भारत जाकर क्यों नहीं रहते, यहां क्या कर रहे हो? तो एक अन्य भारतीय ने कहा कि हम यहां तुम्हारी मां बहनों को बच्चे पैदा करने आए हैं। हालांकि भारतीयों के ये दोनों तर्क विरोधाभासी हैं। एक ओर वे बिना शादी के सह-जीवन को संस्कृति के विरुद्ध मानते हैं, दूसरी ओर कहते हैं कि हम यहां बच्चे पैदा करने आए हैं। भारतीयों द्वारा समलैंगिकता का तर्क भी गलत है, क्योंकि पुराने वेदों और शास्त्रों में भी समलैंगिकता का उल्लेख है। और हाल ही में भारतीय उच्च न्यायालय ने समलैंगिकता को decriminalise कर दिया है। कुछ भारतीयों का मानना है कि लोगों खुले फोरम में कुछ लिखते समय ध्यान रखना चाहिए, और फोरम के मॉडरेटर को भी ऐसी बेहूदा टिप्पणियां तुरन्त हटा देनी चाहिए।

म्युनिक से Christine Liedl, जिनके पति भी भारतीय हैं, कहती हैं कि जर्मन और भारतीय मानसिकता में एक बड़ा अन्तर है अपनी निजी जगह। अगर कुछ जर्मन एकल लोग एक apartment share कर रहे हों, तो भी हर कोई अलग कमरे में रहता है। परिवारों में बच्चों को भी बचपन से ही अलग कमरे में सुलाया जाता है। जबकि संयुक्त परिवारों के कारण भारतीय लोगों को शुरू से ही इकट्ठे और साथ रहने की आदत होती है। मैं जब भारत के हरियाणा में अपने पति के परिवार में गई तो मुझे उसके भाई की पत्नी के साथ बिस्तर में सोना पड़ा। उसका पति किसी अलग कमरे में चला गया। हालांकि वहां drawing room में भी बिस्तर लगाया जा सकता था। हालांकि पैसा बचाना, खासकर म्युनिक जैसे शहर में जहां किराए आसमान को छू रहे हैं, भी महत्वपूर्ण है, पर केवल धन बचाना ही एक कारण नहीं है। एक भारतीय लेखक 'सुधीर कक्कड़' ने भारतीय मानसिकता पर बहुत अच्छी पुस्तक लिखी है 'हम हिन्दुस्तानी'। मूल रूप से यह अंग्रेज़ी में प्रकाशित हुई थी। यह जर्मन भाषा में भी प्रकाशित हो चुकी है। इसे पढ़कर भारतीयों के बारे में काफी पूर्वाग्रह दूर हो जाएंगे।

गुरुवार, 21 नवंबर 2013

शाम के कॉकटेल घंटों के लिए अनन्य ग्लैमर

Mehra Enterprise GmbH खूबसूरत शाम और कॉकटेल फैशन के क्षेत्र में महिलाओं के लिए 34 से 60 के आकार तक स्वयं के brand के लिए और कई अन्य प्रसिद्ध Brands के लिए उच्च गुणवत्ता और जटिल कढ़ाई वाले कपड़े बनाती है।

 

2009 में म्यूनिक के फैशन हाउस मेहरा एंटरप्राइज ने अपनी 20वीं वर्षगांठ मनाई। अनन्य शाम और कॉकटेल फैशन की विशेषज्ञ कंपनी के संस्थापक राकेश मेहरा हैं। "मैं कपड़ा और फैशन उद्योग में बहुत देर से काम कर रहा हूँ" प्रबंध निदेशक राकेश मेहरा कहते हैं. "1943 के बाद भारत में मेरे दादा ने रेशमी कपड़ों को थोक में बेचने और रेशम की साड़ियां बनाने का व्यवसाय स्थापित किया। साड़ियां, जो कि महिलाओं के लिए एक पारंपरिक परिधान है, के लिए हम ने थोक और खुदरा विक्रेता के तौर पर काम किया।" 70 के दशक के मध्य में राकेश मेहरा के पिता ने पश्चिमी परिधानों में हाथ से बने हुए कॉकटेल और शाम को पहनने वाले उन्नत परिधानों के क्षेत्र में ध्यान केंद्रित किया। रेशम के बने आकर्षक मॉडलों की मांग बहुत बढ़ गई और वहीं से निर्यात के दरवाज़े भी खुल गए। निर्यात के प्रथम चरण में राकेश मेहरा ने अमेरिका में वस्त्र बेचने आरंभ किए। और फिर वे ब्रिटेन, इटली, स्पेन और जर्मनी में भी वस्त्र निर्यात करने लगे। "अंत में, हम ने खुद को पूरे यूरोप में स्थापित कर लिया। आज हम पूरी दुनिया में वस्त्र बेचते हैं।" बाजार की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए राकेश मेहरा कहते हैं। "हम पहले की तरह अभी भी एक परिवार हैं जिसमें लगभग 500 लोग कार्यरत हैं। हमारा उत्पादन पूरी तरह से भारत में आधारित है। कढाई वालों और अन्य आपूर्तिकर्ताओं को मिलाकर हमारी मूल कंपनी मेहरा बंधु और Mehra Entertrises में छह से सात हज़ार लोग काम करते हैं।" कई प्रसिद्ध brands के लिए एक अनुबंध के निर्माता के रूप में Mehra Enterprises शाम और कॉकटेल फैशन का उत्पादन और वितरण करता है। कंपनी की तीन चौथाई कमाई यहां से होती है। उनके ग्राहकों में Jean Paul, Escada, Basset Mode, Blacky Dress, Sandra Pabst, Massimo Dutti, Zara, Hermann Lange, Augustat, Clasen, Vera Mont, Swing, Olsen & Oui, Peter Hahn, Mona Lisa, Madeleine और Conley’s जैसी कंपनियां शामिल हैं। और बाकी का एक चौथाई भाग अपने खुद के लेबल से आता है जिसमें हर season में करीब 300 वस्त्र बेचे जाते हैं। हम मुख्य तौर पर रेशम और Tulle netting के वस्त्र बनाते हैं। केवल दस प्रतिशत वस्त्र ही अन्य कपड़ों के बनते हैं। यूरोप में वे लगभग दो सौ ग्राहक कंपनियों को वितरण करते हैं। रूस से भी अब मांग बढ़ रही है। इस बाज़ार के लिए राकेश मेहरा खुदरा विक्रताओं को ढूँढ रहे हैं। „हमारा लक्ष्य 25 साल से लेकर फैशन के प्रति सजग युवतियां हैं। मध्य कीमत के वस्त्रों में रंगों और कढ़ाई का अनोखा मिश्रण होता है। दो तीन सालों से कढ़ाई फिर से फैशन में आ गई है। „परिधान देखने के लिए म्युनिक में हमारा एक show room भी है। वहीं हमारा गोदाम भी है। इस तरह हम हर समय आपूर्ति सुनिश्चित कर सकते हैं। हमारे संग्रह की खास बात यह है कि हमारे पास 34 से लेकर 60 तक के size के वस्त्र हैं। ये वस्त्र दिल्ली के मेहरा बंधु और चार अन्य आपूर्तिकर्ताओं से आते हैं। हम बहुत रचनात्मक हैं। साथ ही हम गुणवत्ता और कीमत के प्रति बहुत सजग हैं।„

Exklusiver Glamour für die Abend- und Cocktailstunden

Hochwertige Stoffe und aufwändige Stickereien verwandelt die Mehra Enterprise GmbH in hinreißende Abend- und Cocktailmode für den großen Auftritt.Außer der in den Größen 34 bis 60 verfügbaren Kollektionen des eigenen Labels Mode Exclusiv Mehra fertigt Mehra Enterprise hochwertige Damenmode für namhafte Marken.

Im Jahr 2009 feiert das Münchener Modehaus Mehra Enterprise sein 20-jähriges Bestehen. Gründer des auf exklusive Abendund Cocktailmode spezialisierten Unternehmens ist Rakesh Mehra. „Ich bin in der Textil- und Modebranche allerdings schon wesentlich länger tätig“, fügt Geschäftsführer Rakesh Mehra hinzu. „In Indien hat mein Großvater in den Jahren nach  1943 zunächst einen Großhandel für Seidenstoffe aufgebaut, die Konfektionierung der hochwertigen Stoffe zu Saris mit eingeschlossen. Die Saris, bei denen es sich um eine traditionelle Bekleidung für Frauen handelt, haben wir an Groß- und Einzelhändler vertrieben.“ Mitte der 70er Jahre erweiterte Rakesh Mehras Vater das Angebot um westliche Kleidungsstücke, wobei der Schwerpunkt in dieser Sparte von Anfang an auf handbestickter Cocktail- und Abendmode lag. Die attraktiven Modelle, zumeist aus Seide gefertigt, erfreuten sich rasch einer regen Nachfrage, was wiederum den Einstieg in den Export begünstigte. Zunächst verkaufte Rakesh Mehra die Kleidungsstücke in den USA, bevor er in einem zweiten Schritt in Großbritannien, Italien, Spanien und Deutschland Fuß fasste. „Schließlich haben wir uns in ganz Europa etabliert. Heute liefern wir unsere Mode weltweit aus“, unterstreicht Rakesh Mehra die erreichte Marktpositionierung. „Nach wie vor sind wir ein Familienunternehmen. Die Produktion, in der rund 500 Mitarbeiter tätig sind, ist komplett in Indien angesiedelt. Die Zulieferer, wie etwa Stickereien, mit eingerechnet, sind insgesamt zwischen 6.000 und 7.000 Menschen für unsere Muttergesellschaft Mehra Bhandu und Mehra Enterprise im Einsatz.“ Die Herstellung und der Vertrieb der Abend- und Cocktailmode erfolgt unter dem Dach der Mehra Enterprise GmbH, die rund drei Viertel ihres Umsatzes als Auftragsproduzent für namhafte Marken erwirtschaftet. Zu den Kunden zählten so renommierte Anbieter wie Jean Paul, Escada, Basset Mode, Blacky Dress, Sandra Pabst, Massimo Dutti, Zara, Hermann Lange, Augustat, Clasen, Vera Mont, Swing, Olsen und Oui sowie die Versender Peter Hahn, Mona Lisa, Madeleine und Conley’s. Die eigene Kollektion mit jeweils ca. 300 Teilen pro Saison unter dem Label Mode Exclusiv Mehra trägt 25 Prozent zum Betriebsergebnis bei. „Bei Mode Exclusiv Mehra geben Seide und Tüll den Ton an. Rund zehn Prozent unserer Stoffe bestehen aus anderen Materialen, darunter verschiedene Mixqualitäten“, informiert Rakesh Mehra unsere Redaktion. In Europa beliefert Mehra Enterprise momentan ca. 200 aktive Kunden. Ein großes Wachstumspotenzial sieht das Unternehmen in Russland. Für diesen Zielmarkt sucht Mehra derzeit selbstständige Handelsverfertigttreter. „Wir sprechen mit unserer Mode die stilbewusste Dame ab 25 an. Unsere im mittleren Preissegment angesiedelte Mode zeichnet sich durch das Spiel mit Farben und hochwertige Stickereien aus. Seit zwei bis drei Jahren liegen Stickereien wieder im Trend“, fügt Rakesh Mehra hinzu. „Einen Überblick über unser Sortiment bietet unser Showroom in München, wo wir auch ein Lager unterhalten. So können wir jederzeit die Liefersicherheit sicherstellen.“ Ein wichtiges Alleinstellungsmerkmal der Kollektionen ist, dass die Modelle in den Größen 34 bis 60 verfügbar sind. Die Kleidungsstücke werden von Mehra Bhandu und vier weiteren Lieferanten in Neu-Delhi gefertigt. „Wir sind sehr kreativ sowie qualitäts- und preisbewusst“, hebt Rakesh Mehra hervor. „Schnitt, Fertigung und Design sind in Indien angesiedelt. Sofern wir als Zulieferer auftreten, produzieren wir natürlich nach den Designvorschlägen der Marken. Generell spielt der Teamwork-Gedanke eine wichtige Rolle in unserem unternehmerischen Selbstverständnis. Das betrifft die Herstellung genauso wie die partnerschaftliche Zusammenarbeit mit unseren internationalen Kunden.“