मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

भारतीय ग्रोसरी खरीदिए ऑनलाईन और समय बचाइए

Raman Gupta, a SAP Employee turned his need into a venture, to supply indian grocery at home with online shope www.get-grocery.com

ਘਰ ਦਾ ਰਾਸ਼ਨ ਪਾਨੀ ਆਨਲਾਈਨ ਖਰੀਦੋ, www.get-grocery.com ਤੇ ਜਾਕੇ.

क्या आप बार बार किराने के सामान की खरीदारी पर अपना समय बर्बाद करने और आटे चावल की थैलियां ढोने की बजाय खुद के लिए समय बचाना चाहते हैं? इसका इलाज है 'गेट ग्रोसरी', सैप कंपनी में कार्यरत 'रमन गुप्ता' द्वारा शुरू की गई एक ऑनलाईन सेवा जिसमें आप निम्न मूल्यों पर मिनटों में सामान खरीद सकते हैं और वह जर्मनी में कहीं भी आपके घर जल्द से जल्द पहुंचा दिया जाता है। रमन गुप्ता सात साल पहले भारत में जनरल इलेक्ट्रिक में अपनी नौकरी छोड़कर जर्मनी उच्च शिक्षा प्राप्त करने आ गए। नए देश, नई भाषा, नई संस्कृति और नए खाने में सबसे अधिक समस्या आई रोज़मर्रा का किराने का सामान जुटाने में। अक्सर भारतीय किराने की दुकानें दूर और महंगी होती थीं। रमन नियमित खरीदारी पर समय खर्च करने की बजाय अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहते थे। उनकी इच्छा होती कि काश कोई यह सब सामान खरीद कर उनके घर छोड़ जाता। पढ़ाई के बाद उन्होंने सैप में नौकरी कर ली, कार भी ले ली, पर किराने की समस्या अब भी वैसी की वैसी रही। अब वे चावल आटे की थैलियां ढोने की बजाय परिवार और मित्रों के साथ समय बिताना चाहते थे। आखिर उन्हें लगा कि यह समस्या और भी बहुत से भारतीय छात्रों और लोगों को होगी, और उन्होंने यह ऑनलाइन दुकान खोल ली। दो महीने में ही इस उपयोगी सेवा का फायदा उठाने वाले डेढ सौ ग्राहक उन्हें मिल गए।
www.get-grocery.com

 

Indian grocery shopping: Why spend time, do it online!

Seven years back, Raman Gupta left his job in GE India and came to Germany to pursue higher studies. New country, new language, new culture, and above all new food. Challenges were many, but he was determined to overcome all the challenges. His story is not special but what he has done is special.

His story is similar to the story of most of the student expats; when you migrate to a new country, the first basic necessity that you start looking for is the place from where you can get Indian groceries. After little searches you find one. Most of the times, it is far, or does not have what you want, or is expensive. Carrying home heavy items like rice bag or Atta bag is also an additional burden.

Raman always wished for someone who could deliver his Indian food items at home, so that he could spend time on studying. Later after his studies he joined SAP, bought a car but his desire for someone delivering Indian groceries to home did not subdue but got more intense. He enjoys cooking with family and friends for weekend parties.  For this he had to spend lot of time going far and buying Indian grocery. He was not happy to spend so much time on this.

Finally he decided to stop looking for some to deliver, instead he decided to deliver. He opened online shop where Indian groceries could be ordered within minutes and he would take care to get it to your home as soon as possible. The prices have been kept reasonable so that the student community student could afford.

In short span of 2 months, he has got more than 150 satisfied customers. This shows that his efforts have started making difference is lives of many people.

In Raman's words "Get-Grocery will save your time and money. Spend them wisely on your family and friends and let us take care of your Indian grocery shopping".

Do you eat for living or live for eating? Doesn't matter because www.get-grocery.com would serve your both inhibitions.

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

विदेशियों का प्रतिनिधित्व कर रहा बोर्ड

The council of foreigners is an official entity recognised by muncipality of Munich to represent issues of foreigners in city goverment. But it is striving for its existence due to lack of interest by foreigners, especiall by those from developed non european countries.




ਵਿਦੇਸ਼ਿਆਂ ਨੂੰ ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਫੈਸਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਆਪਣੀ ਆਵਾਜ਼ ਦੇਣ ਲਈ ਮਉੰਸ਼ਨ ਵਿੱਚ ਕਈ ਸਾਲਾਂ ਪਹਿਲਾਂ ਇਂਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸੰਸਥਾ ਬਣਾਈ ਗਈ. ਹਰ ਛੇ ਸਾਲਾਂ ਬਾਦ ਇਸਦੇ ਨਵੇਂ ਚੁਣਾਵ ਹੁੰਦੇ ਹਨ. ਚੁਣਾਵ ਦਾ ਖਰਚ ਵੀ ਮਉੰਸ਼ਨ ਸਰਕਾਰ ਚੁੱਕਦੀ ਹੈ. ਪੜੋ ਇਸ ਸੰਸਥਾ ਬਾਰੇ.




गैर यूरोपीय देशों के नागरिकों को म्युनिक शहर के नगर पालिका चुनाव में हिस्सा लेने का अधिकार नहीं है। पर परोक्ष रूप से विदेशियों के हितों का नगर पालिका में प्रतिनिधित्व करने के लिये एक सरकारी संस्था है 'Ausländerbeirat', यानि 'विदेशी सलाहकार बोर्ड'। इस बोर्ड में चालीस सदस्य हैं जो हर छह साल के बाद चुनाव द्वारा नियुक्त किये जाते हैं। चुनाव में वह हर कोई हिस्सा ले सकता है जो म्युनिक निवासी है और किसी गैर यूरोपीय देश का नागरिक है। दोहरी नागरिकता वाले लोगों को चुनाव में हिस्सा लेने के लिये खास आवेदन करना पड़ता है। इस वर्ष नवंबर में अगले चुनाव होने जा रहे हैं। क्योंकि चुनाव का खर्च नगर पालिका को उठाना पड़ता है, इसलिये उसके लिये यह देखना ज़रूरी हो जाता है कि इसमें प्रयाप्त लोग हिस्सा ले रहे हैं कि नहीं। दुर्भाग्य से पिछले चुनावों में केवल छह प्रतिशत लोगों ने भाग लिया था जिनकी गिनती कोई तरह हज़ार थी। इनमें से सर्वाधिक संख्या तुर्कियों की थी। क्योंकि यह बोर्ड किसी राजनैतिक पार्टी के साथ बंधा हुआ नहीं है, इसलिये इसे प्रेस में भी बहुत कम पब्लिसिटी मिलती है जिसके कारण चुनाव में इतने कम लोग हिस्सा लेते हैं। और इसी कारण नगर पालिका हर बार सोचती है कि इस बोर्ड का कुछ फ़ायदा है भी या नहीं, इसे रखना चाहिये या समाप्त कर देना चाहिये। पर इस बार बोर्ड पब्लिसिटी के लिये खूब ज़ोर लगा रहा है। पिछले चुनावों में हिस्सा लेने वालों में केवल आठ प्रतिशत महिलायें थीं। इस दृश्य को बदलने के लिये इस बार बोर्ड ने चुनाव के आधे प्रत्याशी महिला होने की शर्त रखी है। यह बोर्ड विदेशियों के लिये कई तरह की मदद उपलब्ध करवाता है, उनके मुद्दों का शहर के निर्णयों में प्रतिनिधित्व करता है, उनके लिये तरह तरह के अन्तरसांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करवाता है। अकसर उसके कई सुझावों को लेकर नगरपालिका के साथ टकराव भी हो जाता है, पर बोर्ड की प्रेस वक्ता Claudia Guter कहती हैं कि कई बार उनके सुझाव को टाल दिया जाता है पर कुछ वर्ष बाद वे अपने आप उन्हें लागू कर देते हैं। जैसे इस बार स्कूलों में मातृभाषा का पाठ्यक्रम पढ़ाने के सुझाव को लागू करने की अनुमति मिल गई है। बोर्ड इसे एक बड़ी उपलब्धी मानता है। अब तक बायरन के स्कूलों में विदेशियों को मातृभाषा पढ़ाये जाने पर पाबन्दी थी। यह बोर्ड करीब तीस साल पुराना है। पहले इसके प्रतिनिधि नगर पालिका द्वारा ही नियुक्त किये जाते थे। पर कुछ सालों से वे चुनाव द्वारा नियुक्त किये जाने लगे हैं। दुर्भाग्य से इस बोर्ड चुनाव में विकसित देशों के नागरिक हिस्सा नहीं लेते हैं, जैसे इंगलैण्ड, अमरीका आदि, क्योंकि यह उनके लिये रोचन नहीं है। इसमें हिस्सा लेने वाले अधिकतर लोग तुर्की या पूर्वी यूरोपीय देशों के नागरिक होते हैं, और मुश्किल से अंग्रेज़ी बोलते हैं। इसलिये बोर्ड कि आधिकारिक भाषा जर्मन है।
http://www.auslaenderbeirat-muenchen.de/