शनिवार, 14 दिसंबर 2013

राजा का सपना

एक राजा ने स्वप्न देखा कि उसके इकलौते पुत्र को शेर खा जाएगा। वह इस स्वप्न से बहुत उदास रहने लगा। अपने इकलौते पुत्र की रक्षा के लिए बेचैन रहने लगा। हरदम उठते-बैठते, जागते-सोते उसे अपने पुत्र की ही फिक्र रहती। काफ़ी दिनों तक सोचने के बाद वह इस निश्चय पर पहुंचा कि राजकुमार को घर पर ही रखा जाए। घर से बाहर ना जाने दिया जाए। घर में ही राजकुमार के लिए सब प्रकार की वस्तुएँ मँगाई जाएँ। यह सब सोच राजा ने राजकुमार का घर से बाहर निकलना बन्द कर दिया। राजकुमार के रहने के लिए एक महल बनवाया जो बहुत सुन्दर था। इस महल में तरह-तरह के पशु-पक्षियों की तसवीरें भी थीं। ये तसवीरें पशु-पक्षियों के जीवित आकार-प्रकार से कुछ कम न थीं। इन तसवीरों में एक शेर भी था। एक दिन राजकुमार की महल में घूमते-घूमते शेर की तसवीर पर नज़र पड़ी। शेर को देख राजकुमार के हृदय में उदासी छा गई। वह उस शेर की तसवीर के पास जाकर बोला - ‘‘आह! भयानक जन्तु! तू ही मेरे पिता को स्वप्न में दिखलाई दिया था। तेरे ही कारण मैं आज इस महल में लड़की की तरह बन्द हूं। तू ठहर, मैं अभी तेरा अन्त किए देता हूं।’’ इतना कहकर वह अपने पास खडे़ पेड़ की ओर लपका। पेड़ से लकड़ी तोड़कर वह शेर को मारना जो चाहता था। राजकुमार ने जैसे ही पेड़ से लकड़ी तोड़ी वैसे ही उसके हाथों में पेड़ के काँटे गड़ गए। काँटे गड़ जाने से राजकुमार को बहुत पीड़ा हुई और तेज बुखार हो आया। यह बुखार काफी दिनों तक चलता रहा और राजकुमार के प्राण लेकर ही रहा।