रविवार, 1 मई 2011

टैगोर परिवार पर बनेगा वृत्तचित्र

बर्लिन निवासी फिल्म निर्माता Nils Visé टैगोर परिवार पर दो भागों में एक वृत्तचित्र बनाने जा रहे हैं। पहला भाग रवीन्द्रनाथ टैगोर के दादा द्वारकानाथ टैगोर पर आधारित होगा और दूसरा भाग खुद रवीन्द्रनाथ टैगोर पर। इस साल मार्च / अप्रैल में वे जर्मनी और भारत में फिल्म की casting करेंगे। 7 मई 2011 को रवीन्द्रनाथ टैगोर के 150वें जन्मदिन पर वे इस फिल्म के promotional trailors दिखाना चाहते हैं। फिर गर्मियों में शूटिंग करना चाहते हैं। फिर 7 अगस्त 2011 को रवीन्द्रनाथ टैगोर की 70वीं पुण्यतिथि तक वे फिल्म को पूरा करना चाहते हैं।Nils Visé ने इस फिल्म के लिए एक साल तक काफी शोध किया है। UNESCO भी टैगोर परिवार की विरासत के लिए उनकी मदद करेगा। बंग्लादेश की सरकार उनकी मदद कर रही है। भारत की भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद, NFDC और संस्कृति मन्त्रालय से उन्हें कुछ मदद की उम्मीद है। इस फिल्म पर कुल लगभग तीन लाख साठ हज़ार यूरो का खर्च आएगा। इस फिल्म में archive material, interviews और biographies का मिश्रण होगा।



Nils Visé इस फिल्म में इस परिवार की कई बातों को उभारना चाहते हैं, जैसे द्वारकानाथ टैगोर पहले भारतीय थे जो यूरोप में आए। इंगलैण्ड के शाही परिवारों में उनका उठना बैठना था। वे यूरोप भी खुद अपने जहाज़ में आते थे। एक बार राजा राम मोहन राय के साथ आकर उन्होंने यूरोप में ब्रह्मा समाज की स्थापना की। उनके बेटे देवेन्द्रनाथ टैगोर यानि रवीन्द्रनाथ टैगोर के पिता ब्रह्मा समाज के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। ब्रह्मा समाज ब्राह्मणों का एक धार्मिक और उदार समूह था। यह पूरी दुनिया में विख्यात हुआ। कलकत्ता के उत्तर में शान्तिनिकेतन नामक गांव में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने विश्व प्रसिद्ध भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की। इस विश्वविद्यालय का उद्देश्य उदारता के साथ, बिना भेदभाव से सभी को लोकतान्त्रिक रूप से शिक्षा उपलब्ध करवाना था। 1913 में रवीन्द्रनाथ टैगोर को अपनी कृति 'गीताञ्जली' के लिए नोबल पुरस्कार मिला। वे पहले गैर यूरोपीय थे जिन्हें नोबल पुरस्कार मिला। पर असल में यह बंगालियों के मन में स्वतन्त्रता की लड़ाई को ठण्डा करने के लिए किया गया था। पर इसके द्वारा वे दूसरे नोबल पुरस्कार विजेता Albert Einstein के सम्पर्क में आए। वे कई बार बर्लिन आए और Einstein से मिले। यहां से भारत और जर्मनी के बीच intellectual और cultural योगदान शुरू हुआ। उस समय जर्मनी का माहौल बहुत बिगड़ा हुआ था। लोग बहुत डरे हुए थे और depressed थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर की लम्बी दाढ़ी, उनकी गर्माहट भरी आवाज़, उनका सुकून, प्रकृति और धर्म के बारे में उनकी बातें यहां के लोगों को भाईं। दूसरी ओर Einstein हमेशा physics की बातें करते थे। इन दिनों भारत का तो यहां trend था। भारत के बारे में बहुत से नाटक खेले जाते थे। पर नाज़ियों के आने से सभी भारतीयों को जाना पड़ा। पहले पहले तो नाज़ियों को गर्व था कि भारतीयों और जर्मनों का मूल एक है। पर फिर उन्होंने देखा कि भारतीय काफ़ी अलग दिखते हैं। रवीन्द्रनाथ टैगोर का नाम भी यहूदियों के पादरी 'रब्बी' से मिलता जुलता था। इसलिए उन्होंने भारतीयों को खदेड़ दिया। उस समय बहुत भारतीय थे यहां। बहुत से भारतीय छात्र इंगलैण्ड पढ़ने जाते थे। इंगलैण्ड ने जर्मनी को भारत में व्यापार करने से रोक रखा था। इसलिए जर्मनी ने भारतीय छात्रों को यहां बुलाना शुरू कर दिया। भारतीय छात्र भी ब्रिटिश उत्पादों और सेवाओं का boycott के लिए जर्मनी को prefer करने लगे। धीरे धीरे जर्मनी भारतीयों, खास कर बंगालियों के लिए भारत से बाहर स्वतन्त्रता संग्राम का मुख्य केन्द्र बन गया। बर्लिन में उन्होंने national committee of indians की स्थापना की। 1957 में रवीन्द्रनाथ टैगोर की कृति पर आधारित प्राण अभीनीत Bombay Talkies की फिल्म 'काबुलीवाला' पहली भारतीय फिल्म थी जो Berlinale में दिखाई गई। उसे Silver Bear मिला था।

रवीन्द्रनाथ टैगोर के एक वंशज बर्लिन में 40 साल से रह रहे हैं। उनकी आयु लगभग 65 वर्ष है। उनकी दो बेटियां जर्मनी में ही पैदा हुई और बड़ी हुई हैं। वे अपने पारिवारिक इतिहास के बारे में लगभग कुछ नहीं जानतीं। कहा जाता है कि द्वारकानाथ टैगोर का इंगलैण्ड की queen victoria के साथ भी सम्बन्ध रहा है।

Nils Visé 16 साल से फीचर फिल्में और commercials बना रहे हैं। कुछ सालों से उनका सम्बन्ध भारत के साथ  काफ़ी बढ़ गया है। 2003 में एक भारतीय फिल्म निर्माता ने जर्मनी में किसी फिल्म की शूटिंग के लिए उन्हें सम्पर्क किया। वह शूटिंग तो नहीं हो पाई पर जर्मन फिल्म निर्माताओं में यह बात फैल गई कि उनका किसी भारतीय फिल्म निर्माता के साथ ताल्लुक है। 2004 में उन्होंने मुम्बई में अपना कार्यालय खोल लिया। 2009 में उन्होंने अपनी कम्पनी को private limited के रूप पञ्जीकृत करवा लिया। उनका फकीर चन्द मेहरा की भारतीय लोकप्रिय फिल्म निर्माण कम्पनी eagle films के साथ गठजोड़ है। उन्होंने Pro7 के लिए मुम्बई में एक फिल्म बनाई। Volkswagen के लिए भारत में कई projects कर चुके हैं। जैसे corporate videos, photo shootings, commercials, press conferences के लिए audio video presentations आदि। Volkswagen कम्पनी भारत में सबसे बड़े investors में से एक है। 2007 में पुणे में plant लगाने के बाद वह 2008 में Jetta कार launch कर चुकी है। अब वह Audi और Skoda के साथ कई और जर्मन कारें भारत में launch करने जा रही है।

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