गुरुवार, 27 जनवरी 2011

गणतन्त्र दिवस

गणतन्त्र दिवस पर म्युनिक और फ्रैंकफर्ट स्थित भारतीय कोंसलावासों में झण्डा फहराया गया। working day होने के बावजूद ढेर सारे लोगों ने उपस्थिति जताकर कार्यक्रमों की शान बढ़ाई। म्युनिक में महाकोंसल श्री अनूप कुमार मुदगल और फ्रैंकफर्ट में महाकोंसल श्री अजीत कुमार ने राष्ट्रपति का सन्देश पड़ते हुए भारत देश की achievements और challanges से और नागरिकों के कर्त्तव्यों से लोगों को परिचित करवाया। उसके बाद अतिथियों के लिए हल्का फुल्का नाशता परोसा गया। म्युनिक में स्वागत रेस्त्रां ने पकौड़े और समोसे परोसे और फ्रैंकफर्ट में मयूर रेस्त्रां ने जलेबियां और अन्य पकवान परोसे।
http://presidentofindia.nic.in/

शनिवार, 22 जनवरी 2011

indibay की पहली बैठक

20 जनवरी को indibay नामक नई संस्था की पहली बैठक में कोई तीस लोग शामिल हुए, अधिकतर जर्मन लोग। म्युनिक के शिराज नामक भारतीय रेस्त्रां में हुई बैठक के मुख्य अतिथि थे भारतीय महाकोंसल श्री अनूप मुदगल। संस्था के संस्थापक Martin Hübler और संजय तांबे ने अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्था और इसके उद्देश्यों के बारे में बताया और साठ यूरो प्रति वर्ष शुल्क के साथ इसका सदस्य बनने के लिए आह्वान किया। फिर अनूप मुदगल ने भारतीय भूगोल, अर्थव्यवस्था और विभिन्न क्षेत्रों में आदान प्रदान की संभावनाओं के बारे में लोगों को बताया। उन्होंने कहा कि नौ दस प्रतिशत जैसी उच्च विकास दर भारत की अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक है। इसके बाद प्रश्नोत्तर सत्र भी हुआ जिसमें लोगों ने, जो भारत के साथ काम करने के इच्छुक थे पर कई तरह के डर से के कारण समझ नहीं पा रहे थे कि भारत के साथ काम करना कितना आसान है, कई प्रश्न पूछे। खासकर चीन और भारत में तुलना सम्बंधी कई प्रश्न पूछे। जैसे कि चीन के बारे में यहां मीडिया में बहुत कुछ छपता है पर भारत के बारे लगभग कुछ भी नहीं, ऐसा क्यों। चीन बहुत आक्रामक तौर पर दूसरे देशों में अपने पैर पसार रहा है, जैसे अफ्रीका, पर भारत चुप चाप रहता है। इससे पश्चिमी युवा भी चीन की ओर अधिक आकर्षित होते हैं, चीनी भाषा सीखते हैं, चीन घूमने जाते हैं, पर भारत की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। कारोबार में भी चीन पर भरोसा करना आसान होता है, जबकि भारतीयों की कारोबार करने की शैली सामान्यत किसी प्रणाली तहत नहीं, बल्कि अन्दाज़ से होती है। इसलिए उनके साथ कारोबार करना आसान नहीं। इन प्रश्नों पर अनूप मुदगल चीन पर किसी टिप्पणी से बचते हुए केवल इतना कहा कि भारत दूसरों के साथ मिलकर आगे बढ़ना चाहता है, किसी की कीमत पर नहीं। शुरू शुरू में वहां उथल पुथल नज़र आती है पर थोड़ी देर बाद वहां के लोगों की mentality समझ आ जाती है और काम सामान्यत चलने लगता है। कुछ अतिथियों का मानना था कि भारत की बजाय चीन अधिक unpredictable है क्योंकि बरसों वहां रहने के बाद भी पश्चिमी कंपनियां खुद कुछ कमा नहीं पाई हैं बल्कि अपनी know how खो बैठी हैं।