रविवार, 28 मार्च 2010

राजा दुष्यन्त यूरोप की पहली टाटा नैनो कार में

World's cheapest car 'Tata Nano' was imported first time in Germany, but not for sale but for premier of a historical opera based on an old indian story. Not only for premier, but the renowned car is part of the opera itself. Company Green Rent which is selling Tata cars from India in Germany took care to import one car in time, not an easy job.




ਜਰਮਨੀ ਵਿੱਚ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਅਤੇ ਆਧੁਨਿਕ ਭਾਰਤ ਦਾ ਅਨੋਖਾ ਮਿਲਨ ਹੋਇਆ. ਕਾਲੀਦਾਸ ਦੀ ਕਹਾਨੀ 'ਸ਼ਕੁੰਤਲਾ' ਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਦੋ ਸਦਿਆਂ ਤੋਂ ਅਧੂਰਾ ਪਿਆ ਓਪਰਾ ਆਖਰਕਾਰ ਪੂਰਾ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਆਧੁਨਿਕ ਭਾਰਤ ਦੀ ਪਹਚਾਨ, ਦੁਨਿਆ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਸਸਤੀ ਕਾਰ ਟਾਟਾ ਨੈਨੋ, ਨੂੰ ਇਸ ਓਪਰਾ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ.




जर्मनी के एक शहर में भारत के सन्दर्भ में दो ऐतिहासिक घटनाएं एक साथ, एक ही जगह पर हुईं, एक प्राचीन भारत को लेकर और एक आधुनिक भारत को। पहली बार कालीदास की कृति 'शकुन्तला' को एक ओपरा के रूप में पेश किया गया और इसी शो के मंच पर यूरोप में पहली आयात की गई टाटा की नैनो कार प्रस्तुत की गई। कार न केवल प्रस्तुत की गई, बल्कि यह ओपरा की कहानी का एक हिस्सा थी।27 मार्च को सारब्रुकन (Saarbrücken) शहर के थिएटर में इस शो का प्रीमियर हुआ। खचाखच भरे हाल में अधिकतर लोकल जनता थी, केवल गिने चुने तीन चार भारतीय थे। शो में कहानी को सीधा सीधा दिखाने की बजाय प्राचीन कहानी के छोटे छोटे टुकड़ों को एक आधुनिक कहानी में जोड़ा गया। शंकुतला के पुत्र के आधुनिक प्रारूप के लिए टाटा की लखटकिया कार नैनो को चुना गया जिसे जर्मनी में लाना कोई आसान काम न था। कम्पनी ग्रीन रेण्ट, इण्डो जर्मन बिजनेस नेटवर्क और श्री टेक नामक भारतीय कम्पनी के सहयोग के द्वारा नैनो कार को जर्मनी में ला पाना सम्भव हुआ। 16 मार्च को फ़्रैंकफर्ट हवाई अड्डे पर यूरोप की पहली टाटा नैनो कार पहुंची। ओपरा की कहानी आम लोगों की समझ से बाहर थी। कार को कहानी में किस प्रकार जोड़ा गया, इस बारे में कई लोगों के अलग अलग ख्याल हैं। कुछ भारतीय श्रोताओं का मानना था कि ओपरा में राजा दुष्यन्त और शकुन्तला के द्वारा पैदा हुए पुत्र के बीच के रिश्ते की जर्मन जनता और टाटा नैनो ग्रीन के बीच के रिश्ते के साथ तुल्ना की गई है, क्योंकि टाटा नैनो में भी जर्मन तकनीक का उपयोग हुआ होगा। ग्रीन रेण्ट के गुन्तर बेण्टहाउस मानना है कि जिस तरह चालीस के दशक में जर्मनी में आम जनता के लिए फोल्क्सवेगन नामक कार बनाने का सपना देखा गया था, उसी प्रकार भारतीय आम जनता के लिए नैनो कार बनाने का सपना देखा गया है और पूरा किया गया है। शो के निर्देशक बेर्टहोल्ड शनाईडर का कहना है कि जिस तरह महाभारत और कालीदास की कहानियों में थोड़ा थोड़ा अन्तर है, इन सभी कहानियों को शो में अलग अलग स्तहों पर दिखाया गया है, जैसे कलाकार, कार, कई सक्रीनें, पर्दा आदि। शो में आधुनिक तकनीक का भरपूर उपयोग किया गया था। मंच के बिल्कुल सामने दर्शकों और कलाकारों के बीच एक बड़ी सी शीशे की स्क्रीन रखी हुई थी, जो सामान्यत पारदर्शी थी, पर उसमें बिजली का संचार होने पर वह एक पर्दे में बदल जाती थी जिसपर प्रोजेक्टर द्वारा बीच बीच में कई क्लिप, इफेक्ट या लाइव कैमरे द्वारा सीन दिखाए गए। मंच के पीछे वाले विशाल पर्दे पर भी लगातार एक प्रोजेक्टर द्वारा कई डिज़ाइन और इफ़ेक्ट दिखाए गए, जैसे जब राजा दुष्यन्त कार चला रहा होता है तो पीछे विशाल पर्दे पर ऐसी फिल्म चलाई जाती है जिससे कार के सचमुच चलने का आभास होता है, जैसे पुरानी फिल्मों में दिखाया जाता था। थिऐटर के सुरक्षा नियमों के चलते कार में से इञ्जन निकाल लिया गया था। प्रीमियर में द्रीन रेण्ट कम्पनी ने कई प्रमुख कार डीलरों को आमन्त्रित किया था। श्री बेण्टहाउस का कहना है कि यहां टाटा नैनो की बहुत मांग है। यह शो देखना न भूलें। इसके शो अभी जून तक चलेंगे।

इस ओपरा को 1820 में ऑस्ट्रिया के एक कम्पोज़र फ्रांज़ शुबर्ट (Franz Schubert) ने लिखना शुरू किया था पर दो भाग लिखने के पश्चात उनकी मृत्यु हो गई थी। फिर इसपर 2001 में डेनमार्क के एक कम्पोज़र कार्ल आगे रासमुस्सन (Karl Aage Rasmussen) ने काम करना शुरू किया।

http://www2.theater-saarbruecken.de/stuecke/oper/stueck/sakontala.html
fotos:
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नोटः जर्मन कार कम्पनी Volkwagon का उच्चारण दरअसल फ़ोल्कस्वागन (Folkswagon) है, क्योंकि जर्मन भाषा में V को फ की तरह उच्चारित किया जाता है। यानि जन जन की कार। हालांकि ये कारें भी अब बहुत महंगी बिकती हैं, वे जन जन की कार नहीं रह गईं हैं।