सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

म्युनिक में इंडियन बिजनेस टेबल मीटिंग

22 अक्तूबर को म्युनिक में 'मोहम्मद रेहान' द्वारा आयोजित किए जाने वाली मासिक 'इंडियन बिज़नेस टेबल' मीटिंग में दो कंपनियों ने व्याख्यान दिया। पहला व्याख्यान 'जर्मन मशीनरी और प्लांट संघ' (वीडीएमए) के भारतीय कार्यालय से आए राजेश नाथ ने दिया। उन्होंने जर्मनी और भारत के बीच इस क्षेत्र में होने वाले व्यापार, उसकी संभावनाओं पर कई रोचक आंकड़े पेश किए। दूसरा व्याख्यान नासिक की एक महंगी वाइन बनाने वाली नई कंपनी Reveilo की ओर से पी.एच.डी. कर रहे छात्र 'शैलेष मोरे' ने दिया। उन्होंने ने भी भारतीय समाज में अल्कोहल उपभोग के बदलते परिदृश्य को बड़े रोचक ढंग के पेश किया।

मीटिंग में कोई तीस से ऊपर कंपनियों के प्रतिनिधि उपस्थित थे। मीटिंग के आरंभ में श्री रेहान ने मीटिंग की भाषा का चयन करते हुए कहा कि जर्मनी के एक नेता Joschka Fischer ही एकमात्र ऐसे नेता थे जिन्होंने अपने व्याख्यानों में अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग किया। उन्होंने मीटिंग में व्याख्यान देने वाली दो कंपनियों के प्रतिनिधियों का परिचय दिया। एक थे कलकत्ता से खास तौर पर आए 'जर्मन मशीनरी और प्लांट संघ' के भारतीय कार्यालय के अध्यक्ष श्री राजेश नाथ और दूसरे थे भारत की एक नई वाइन कंपनी रेवीलो का जर्मनी और यूरोप में मार्कीटिंग का काम देखने वाले श्री शैलेष मोरे। श्री रेहान ने आगे कहा कि यह मीटिंग के बाद इस वर्ष में केवल एक और मीटिंग होगी, वह भी दिसंबर में क्योंकि इस बीच उन्होंने कई सप्ताह के लिए भारत जाना है।

इसके बाद मीटिंग में उपस्थित लोगों ने अपना संक्षेप परिचय दिया। म्युनिक विश्वविद्यालय के इंडोलोजी विभाग से 'डा. डेगमार हेल्लमान राजनयगम' नामक एक इतिहासकार महिला ने कुछ तमिल शब्द बोल-कर भारतीय भाषाओं से अपना लगाव व्यक्त किया और कहा कि वे बहुत लंबे समय से इस मीटिंग में आती रहीं हैं। साथ ही उनके पति श्री एन राजनयगम ने अपना परिचय देते हुए कहा कि वे नोकिया सीमेन्स नेटवर्क में प्रोजेक्ट मैनेजर के तौर पर काम करते हैं। इस कंपनी के भारत में चेन्नई और गुड़गाँव में मुख्य कार्यालय हैं। अब चीन और भारत मोबाइल फ़ोन क्षेत्र में सबसे बड़े बाज़ार हैं। इसपर श्री रेहान ने टिप्पणी करते हुए बताया कि इस कंपनी ने एक भारतीय को अपना नया सीईओ चुना है। 1 अक्तूबर से 'श्री राजीव सूरी' फ़िनलैंड स्थित मुख्य कार्यालय में कार्यभार संभालेंगे।

फिर 'बायरन प्रांतीय बैंक' से सिल्विया हाउसबेक जो इस कंपनी का गुड़गाँव में स्थित 'जर्मन सेंटर' का काम भी देखती हैं ने अपना परिचय दिया। गुड़गाँव के 'जर्मन सेंटर' में जर्मन कंपनियों को भारत में पैर पसारने के लिए आरंभिक मदद और कार्यालय खोलने के लिए जगह प्रदान की जाती है। उनका परिचय पूरा करते हुए श्री रेहान ने टिप्पणी की कि जर्मन सेंटर में अब एक नदीने उल्रिके नामक नई अध्यक्ष आईं हैं, एक जर्मन कंपनी में एक महिला का स्वर्ण पद पर होना एक अस्वभाविक बात है। इसके बाद बायरन के 'पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्रालय' की ओर से आए 'क्लाउस श्युट्टल' ने अपना परिचय दिया। उन्होंने बसेरा को बताया कि बैंगलोर से अपशिष्ट प्रबंधन की ट्रेनिंग के लिए एक प्रतिनिधि-मंडल आया हुआ है पर अभी भारत में व्यवहारिक स्तर पर इस काम को कई वर्ष लगेंगे। इसके बाद इटली से अपने बेटे के साथ आईं हुई एक महिला ने परिचय दिया। वे शौक और व्यवसाय से दार्शनिक, कलाकार और शोधकर्ता हैं और उनके युवा बेटे एंडर्सन फ़ाब्बियोच्ची इटली के बोलोग्ना शहर में राजनीति की पढ़ाई कर रहे हैं। पर उन्होंने पढ़ाई के बीच कलकत्ता में वीडीएमए कार्यलय में चार माह ट्रेनिंग की और अब म्युनिक कार्यालय में ट्रेनिंग कर रहे हैं। इसके बाद डा. हाफ़्फा एंड पार्टनर कंपनी से डा. एन्नेग्रेट हाफ़्फा और उनकी सहायिका ने परिचय दिया। उन्होंने कहा कि उनकी कंपनी अन्य कंपनियों को मीडिया में प्रचार प्रसार के लिए मदद करती हैं। फिर कई यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद करने वाली कंपनी की मालकिन इस्साबेल्ले फ़ॉन दे मेर्कट ने परिचय दिया। जब श्री रेहान ने पूछा कि क्या वे हिंदी में भी अनुवाद कर सकती हैं तो उन्होंने कहा कि उनके पास अभी हिंदी में अनुवाद करने वाला कर्मचारी नहीं है। इसपर वहां उपस्थित रुचि श्रीवास्तव ने कहा कि वे इस काम में मदद कर सकती हैं। फिर सीओसी से मुन्ना श्रीवास्तव और उनकी पत्नी रुचि श्रीवास्तव ने परिचय दिया। रुचि श्रीवास्तव ने कहा कि उन्होंने इलाहाबाद से पर्यावरण और बायो-टेक क्षेत्र में पढ़ाई की है। वे बहुत समय से इस मीटिंग में नियमित आ रही हैं। उन्हें यहां अच्छा लगता है इसे अधिक से अधिक मदद देंगी।

इसके बाद लिंडे से मेरी आइचागुई ने परिचय देते हुए कहा कि हालांकि वे स्टील प्लांट के क्षेत्र में कार्यरत हें पर वे भारतीय व्यवसाय और आर्थिक स्थिति की एक झलक पाने के लिए यहां आई हैं। ग्रीन रेंट कंपनी से गुंतर बेंटहाउस ने परिचय देते हुए बताया कि उनकी कंपनी ने जर्मनी में टाटा की कारें गैस के साथ सप्लाई करनी आरंभ की है। फिलहाल इंडिका कार सप्लाई की जा रही है। उनके एक इतालवी सहकर्मी ने कहा कि उन्हें इस मीटिंग में आकर बहुत खुशी हुई। पर्यावरण और सामाजिक उत्तरदायित्व को देखते हुए सस्ती और कम खपत वाली कारें आज के समय में बहुत प्रासंगिक हैं। और इसी उत्तरदायित्व को उनकी कंपनी निभा रही है। खासकर भारतीयों के लिए जर्मनी में भारतीय कार खरीदना एक अनोखा अनुभव होगा। प्रदर्शन के लिए एक कार अपने साथ लाए थे जिसपर लोग टेस्ट ड्राइव भी ले सकते थे। वे सभी आयोजनों में इस कार को लेकर जाते हैं। वे 5Ps में विश्वास करते हैं, pride, profit, peace, pleasure, people.

 

इसके बाद सैप कंपनी में कार्यरत 'सिद्धार्थ मुदगल' ने परिचय देते हुए कहा कि वे अपने संपर्क बढ़ाने के लिए इस मीटिंग में आए हैं। अभी अभी उन्होंने दीपावली नामक एक भारतीय पर्व आयोजित किया जो बहुत सफ़ल रहा और जिसमें सौ से भी अधिक लोग शामिल हुए। इस पर श्री रेहान ने कहा कि बीमार होने के कारण वे इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सके।

फिर भारतीय कंपनी टीसीएस से मनीष पांडे ने बताया कि हालांकि वे भी टाटा कंपनी से ही हैं पर उनकी शाखा 'आई टी' क्षेत्र में कार्यरत है, कारों में नहीं। इस कंपनी का जर्मनी में मुख्य कार्यालय फ़्रैंकफ़र्ट में है जहां तीस चालीस लोग कार्यरत हैं। म्युनिक कार्यालय में बीस तीस लोग हैं। ड्युस्सलडॉर्फ़ में इस कंपनी ने एक कंपनी को ख़रीदा है जिसमें लगभग 90 जर्मन लोग कार्यरत हैं। अगर आर्थिक मंदी न होती तो हम तीस चालीस प्रतिशत की वृद्धि दर्ज कर सकते थे।

इसके बाद म्युनिक से एक वीज़ा सलाहकार बारबरा रीट्श, श्री रेहान के सहायक श्री नाथ और म्युनिक कोंसलावास से मार्किटिंग ऑफिसर 'जीजो पारूक्करण' ने परिचय दिया। अंत में काफ़ी देर से पहुँचे म्युनिक विश्वविद्यालय के इंडोलोजी विभाग से प्रो. डा. रॉबर्ट ज़ायडनबोस और इवा ग्लासब्रेन्नर ने बताया कि उनका विभाग लगभग एक सौ चालीस वर्ष पुराना है। उन दोनों ने अब मिलकर एक छोटा सी संस्था खोली है 'मान्य-भारतीय भाषाओं की संस्था' जिसमें हिंदी, कन्नड़, संस्कृत आदि कई भारतीय भाषाएं सिखाई जाएंगी। यह शिक्षा एकल अथवा सामूहिक स्तर पर उपलब्ध होगी। डा. ज़ायडनबोस ने कहा कि वे तो एक कर्नाटक वासी से भी अच्छी कन्नड़ बोल लेते हैं। इसके अलावा वे भारतीय संस्कृति के बारे में जर्मन भाषा में कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित करेंगे।

इसके बाद श्री रेहान ने अपना व्याख्यान आगे बढ़ाते हुए बताया कि कुछ भारतीयों ने अपनी प्रतिभा और जागरुकता से विदेशों में भी नाम कमाया है। इसका ताज़ा उदाहरण हैं लखनऊ निवासी डा कमर रेहमान जिन्हें रॉस्टॉक विश्वविद्यालय ने 11 सितंबर को पिछले ग्यारह वर्षों की सहभागिता के दौरान बायोटेक्नॉलॉजी क्षेत्र में उत्कृष्ट काम के लिए मानद डॉक्टरेट के साथ सम्मानित किया। हालांकि वे मुस्लिम पृष्ठभूमि से हैं पर जर्मन वाइन की बहुत अच्छी जानकार हें। पिछली अक्तूबर में उनसे मुलाकात में उन्होंने बताया कि जर्मनी की वाइन सितंबर अक्तूबर के महीने में पीनी चाहिए। वाइन का विषय आज वैसे भी प्रासंगिक है क्योंकि आज जर्मन बाज़ार में भारतीय वाईन के आगमन पर व्याख्यान होने वाला है। फिर उनहोंने याद दिलाया कि इस वर्ष 17 मार्च को पूर्व भारतीय राजदूत मीरा शंकर ने 'अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी' की संविधि पर हस्ताक्षर किए। हैदराबाद में नवंबर में सोलर प्रदर्शनी का आयोजन होगा। जर्मन कंपनी टाटा के साथ मिलकर डीज़ल इंजन बनाने की सोच रही है। रवींद्र गुज्जुला नामक एक भारतीय ने पहली बार जर्मनी के एक शहर का मेयर बनकर भारत का नाम रौशन किया है उनका कहना है अगर आप विदेश में सफ़लता पाना चाहते हैं तो आपको स्थानीय लोगों से बेहतर काम करना होगा और वहां कि प्रस्थितियों के अनुकूल अपने आप को ढालना होगा। भेदभाव तो हर जगह किसी न किसी रूप में होता है। फिर उन्होंने यूरोप में सर्दियों में पहनने के लिए औपचारिक परिधानों पर थोड़ा सुझाव दिए। अंत में उन्होंने कहा कि इस वर्ष उन्होंने ग्यारह बार बिजनेस मीटिंग आयोजित की है जिसमें टाटा, लिंडे जैसी बड़ी बड़ी कंपनियों ने भाग लिया। अगले वर्ष म्युनिक में भारी मशीनरी पर आधारित BAUMA नामक एक बड़ा व्यापार मेला होने जा रहा है जिसमें भारत से लगभग 38 कंपनियों और चार हज़ार लोगों के आने का अनुमान है।

इसके बाद वीडीएमए से राजेश नाथ ने व्याख्यान आरंभ करते हुए श्री रेहान का उन्हें आमंत्रित करने के लिए धन्यावद किया और कहा कि उन्हें यहां आकर गर्व हो रहा है। लिंडे कंपनी भी वीडीएमए की सदस्य है। 2008 में जर्मनी से इंजनियरिंग मशीनरी आयात करने वाला भारत 32वां देश था, अब 14वां देश हो गया है। यह आपसी व्यापार का बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र है जिसका उपयोग यांत्रिक विद्युत पारेषण क्षेत्र में सबसे अधिक है। 2000 में इस क्षेत्र में जर्मनी से भारत को अस्सी अरब यूरो का निर्यात हुआ था जो 2008 में बढ़कर 4.2 खरब यूरो हो गया। इसके बाद इंजनियरिंग मशीनरी का सबसे अधिक उपयोग समुद्र लंबी दूरी के नौवहन में होता है। रोबोट और स्वचालन तकनीक इंजनियरिंग मशीनरी में महत्वपूर्ण हैं। लगभग 200 सदस्य कंपनियों के साथ यह संस्था लगभग 9.3 खरब यूरो का व्यापार करती है जिसमें से 45% निर्यात है। भारतीय उद्योग में हालांकि अभी भी बहुत काम शारीरिक श्रम द्वारा होता है पर फिर भी स्वचालन और रोबोट का भविष्य बहुत उज्जवल है। इसका योगदान दिनो दिन बढ़ेगा, खास कर बिजली के क्षेत्र में। भारतीय सरकार ने गैर पारंपरिक ऊर्जा की दिशा में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं। यह हमारे लिये अच्छा अवसर है। अब कम लागत वाले देशों से प्रतियोगिता बढ़ रही है, विनिर्माण परियोजनायें इन देशों में स्थानंत्रित हो रही हैं। जर्मन कंपनियां भी भारत में उत्पादन सयंत्र लगा रही हैं। पर भारत में पर चुनौतियां भी अलग प्रकार की हैं। भारत क्षेत्रफल में जर्मनी से नौ गुना बड़ा है। पूरा यूरोप का क्षेत्रफल भी भारत का केवल 73% है। यह बहुत बड़ा अंतर है। पर जर्मन मशीनरी को भारत में बहुत महत्व दिया जाता है। 2008 में भारत को 3.2 खरब यूरो की जर्मन मशीनरी निर्यात हुयी थी। पर इससे आगे बढ़ पाना अभी बहुत मुश्किल है। भारत ने 2007 में 12.5 खरब यूरो की इंजनियरिंग मशीनरी आयात की थी, जिसमें जर्मनी का 19% हिस्सा था और चीन का 14%. यानि जर्मनी 5% से आगे था। इसकी अपेक्षा भारत से जर्मनी को निर्यात कुल निर्यात का 33% था। भारत से तीस करोड़ यूरो की मशीनरी निर्यात हुयी, जो कम है पर उम्मीद बांधती है। इंडो जर्मन भागीदारी में संयंत्र इंजीनियरिंग और रसायण उद्योग सबसे ऊपर हैं। भारत में इनसे संबंधी सबसे अधिक संयंत्र 36%के साथ महाराष्ट्र में हैं। पुणे जर्मन कंपनियों की पसंदीदा जगह है। इसके बाद तमिलनाडु, दिल्ली और अंत में 6% के साथ पश्चिम बंगाल है। जर्मनी की भारत में उपस्थिति बॉश और सीमेंस जैसी कंपनियों के साथ लंबे समय से है। भारत का बढ़ता मध्य वर्ग, मानव और प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता, विशाल घरेलू बाजार, लोकतंत्र और युवा जनसांख्यिकीय प्रोफाइल भारत के सबसे बड़े आकर्षण हैं।

चुनौतियां:
गरीबी और बुनियादी सुविधाओं की कमी भारत मी सबसे बड़ी चुनौतियां हैं। वर्तमान सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री ने हर रोज़ बीस किलोमीटर सड़क बनवाने का निर्णय लिया है। इसके अलावा कुछ नये हवाई अड्डे बन रहे हैं, विदेश नीतियों और विदेशी कंपनियों के लिये शुल्क संरचनाओं में सुधार हो रहा है। सुरक्षा और समयनिष्ठा भी भारत में मुद्दे हैं। यूरोपीय कर्मचारियों को भारत में काम करने के लिये समय के मामले थोड़े लचीलेपन का आदि होना होगा। लेकिन अब भारत में समय की कीमत के बारे में जागरुकता आ रही है। पर भारत की पदानुक्रमक संरचनाअभी अभी भी बहुत मजबूत है। बॉस को हमेशा ठीक माना जाता है। बहुत से बिजनेस तो परिवार तक ही सीमित रहते हैं। किसी समस्या को स्वीकार करने में वे लोग झिझकते हैं जो जर्मन लोगों के लिये समझना मुश्किल होता है। भारत में टकराव की बजाय कोई बीच का रास्ता निकालने पर ज़ोर दिया जाता है। आपसी संबंध वहाम बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। पर जर्मन लोगों के लिये मुद्दा अधिक महत्वपूर्ण होता है।

वीडीएमए एक सदस्य आधारित संस्था है जिसमें लगभग 3000 कंपनिया सदस्य हैं। यह केवल अपने सदस्यों के लिये काम करती है। इसके पूरे विश्व में 8 पंजीकृत कार्यलय हैं। मुख्य कार्यलय फ़्रैंकफ़र्ट में है। अंतरराषट्रीय स्तर पर भारत सबसे पहले देशों में से एक था। बल्कि चीन में भी बाद में कार्यलय स्थापित किया गया। भारत में नोएडा, कोलकाता और बैंगलोर में कार्यलय हैं। यह जर्मन कंपनियों को भारत में बिजनेस स्थापित करने में सहयोग देती है। हालांकि अब भारतीय उत्पादक भी ऊपर आ रहे हैं। उनके उत्पाद हालांकि चीन के उत्पादों से महंगे होते हैं पर और भी कई कारक हैं जो उन्हें स्थापित होने में मदद करते हैं। भारत फ़ोर्ज, कल्याणी समूह आदि ऐसे उदाहरण हैं जो अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।

(pending)