शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008

मुंबई हमलों पर जर्मनी से एक नज़र

मुंबई हमलों में कुछ जर्मन नागरिकों की मृत्यु पर समाचार छापने के बाद जर्मन मीडिया ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली है जैसे कुछ हुआ ही न हो। खास कर पाकिस्तान पर उँगली उठाने से बचा जा रहा है। इस मुद्दे से यह कहकर पल्ला झाड़ा जा रहा है कि भारत के मुसलमान जागृत हो रहे हैं, इस लिए ऐसी घटनाओं को हवा दे रहे हैं, या फिर भारतीय पुलिस के पास लड़ने के लिए पर्याप्त अस्त्र नहीं थे, या फिर भारत और पाकिस्तान को अपने झगड़े जल्द निपटाने चाहिए। Frankfurter Rundschau ने खुलासा किया है कि जर्मनी की असला बनाने वाली कंपनियों से पिछले वर्षों में भारत पाकिस्तान आदि देशों में भारी निर्यात हुआ है।

हैरत की बात ये है कि जर्मनी में रहने वाला भारतीय समुदाय इन घटनाओं से क्षुब्ध तो है परंतु सार्वजनिक स्तर पर विरोध करने से डर रहा है। जहां कोलंबिया, कोसोवो, तिब्बत आदि कितने ही देशों के लोग अपने राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर झंडे और बैनर लेकर सड़कों पर उतर आते हैं, मीडिया की नज़र में आते हैं, वहीं भारतीय समुदाय इतना कुछ होने पर भी घर में बैठा टीवी देख रहा है। भारतीय लोग सार्वजनिक विरोध करना चाहते हैं लेकिन अपना नाम मीडिया अथवा भारतीय सरकार की नज़र में आने से डर रहे हैं। ज़ाहिर है, अधिकतर भारतीय लोगों की दौड़ नौकरी, परिवार, वीज़ा और घर तक ही होती है। लेकिन कम से कम इस मुद्दे में भारतीय लोगों में एकता नज़र आयी। लोग यह भूल कर कि वे बंगाली हैं, पंजाबी हैं, या फिर हिन्दु हैं, मुस्लिम हैं या सिक्ख हैं, पाकिस्तान की भर्तस्ना कर रहे हैं। अधिकतर लोगों का यह मानना है कि अब बहुत हो गया, भारत इतना बड़ा देश होकर इतने छोटे से देश से डर रहा है। उसपर चढ़ाई कर देनी चाहिए। आज इंदिरा गाँधी होती तो इन सब का अच्छा उत्तर देती। लेकिन कईयों का यह भी मानना है कि बिना भारतीय लोगों की मदद के बिना इतना बड़ा आतंकी हमला संभव नहीं है। ज़रूर हमारे भी लोग मिले हुए हैं। हमारा सुरक्षा तंत्र भी जर्मनी जैसा मजबूत क्यों नहीं है। यहां पुलिस छोटी छोटी बात पर गाड़ियां खड़ी करवा कर चेकिंग शुरू कर देती है और वहां आतंकी शहर के बीचों बीच इतना असला ले आए, किसी को पता नहीं चला। आमची मुंबई वाले 'ठाकरे' अब किधर गुम हो गए हैं।

कुछ भारतीय लोगों ने पाकिस्तान से आयात होने वाले किराने के सामान, खासकर बासमति चावल आदि का बहिष्कार करने की सोची। लेकिन यहां अधिकतर भारतीय किराने के दुकानदारों का कहना है नब्बे प्रतिशत किराने का सामान पाकिस्तान या चीन से आता है। बहिष्कार करेंगे तो लोग खाएंगे क्या। उनका यह भी कहना है कि वे भी इन घटनाओं से दुखी हैं लेकिन पाकिस्तानी लोग भी उनके ग्राहक हैं, इसलिए वे खुलकर इस मुद्दे पर अपनी सोच प्रकट नहीं कर सकते। उनका कहना है कि पाकिस्तानी लोग भी ऊपर से दुख प्रकट करते हैं लेकिन अंदर से खुश हैं और कहते हैं कि भारतीय तो ठंडे लोग हैं, इनसे कुछ नहीं होता।