बुधवार, 26 जून 2024

Links for movies in Basera issue 11

12th Fail


A Secret


Amar Singh Chamkila


Anyone but You


Arnold


Auftauchen


Babylon


Ballon


Bardot


Be Water


Becoming Nawalny - Putins Staatsfeind Nr. 1


Der Fall Chodorkowski


Die Unsichtbaren


Ehrengard: The Art of Seduction


Fidelity


Forever Mine


Green Border


Hanna


Jackpot


Kolle – Ein Leben für Liebe und Sex


Lady Chatterley's Lover


Lisa Frankenstein


Lunchbox


Madame Web


Miss Julie (1999)


Monsieur Chocolat


Mothering Sunday


Nobody Else but You


Not Without My Daughter


Oktoberfest 1900


Otac (पिता)


Peepli Live


Secretary - womit kann ich dienen?


Sister of Mine


Skater Girl


Stalin की विरास्त


The Babysitters


The Boys from Brazil


The Pianist


Titanic


Top Gun: Maverick

रविवार, 16 जून 2024

मोदी कैसे भारत को विश्व शक्ति बनाना चाहते हैं



Germany के media में लगातार भारत विरोधी, हिन्दू विरोधी और मोदी विरोधी लेख छपते रहते हैं और TV पर दस्तावेज़ी फिल्में दिखाई जाती हैं. ऐसे ही एक वृत्तचित्र का link संलग्न है. हम आपको इस वृत्तचित्र में कही गई मुख्य बातों को थोड़े सरलीकरण के साथ हिन्दी में बता रहे हैं. वे लोग हमेशा भारत की उन्नति से शुरू करते हैं, जिसे अनदेखा भी नहीं किया जा सकता, और फिर घुमा फिरा कर बात हिन्दू उग्रवाद और 2002 के दंगों तक ले आते हैं.

शीर्षक: मोदी कैसे भारत को विश्व शक्ति बनाना चाहते हैं और मुसलमानों को बाहर करना चाहते हैं

Johannes Hano द्वारा

मोदी खुद को एक नए, आत्म-विश्वासी भारत के नेता के रूप में देखते हैं और खुद को नेहरू और गान्धी जैसे प्रतीकों के बराबर रखते हैं. नरेन्द्र मोदी दोबारा प्रधान-मन्त्री बनना चाहते हैं.

नरेन्द्र मोदी भारतीय प्रधान मन्त्री के रूप में तीसरे कार्यकाल की ओर अग्रसर हैं. उनकी लोकप्रियता उनके सभी विरोधियों पर भारी पड रही है. उनके नेतृत्व में भारत विश्व शक्ति बनने के लक्ष्य की ओर अग्रसर है. उनकी राजनीतिक रणनीति का आधार उग्र हिन्दू राष्ट्र-वाद है, जिस के सहारे वे देश को भविष्य की ओर ले जाना चाहते हैं. समाज के बड़े हिस्से को बाहर रखा गया है. मोदी के भारत में 20 करोड़ से अधिक मुसलमानों के लिए जगह लगातार कम होती जा रही है.

25 February 2024 को भारत के प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी ने scuba gear पहन कर और प्रसाद के रूप में मोर पंख ले कर अरब सागर में गोता लगाया और भगवान कृष्ण से सम्बन्धित सदियों पहले अरब सागर में डूब चुके प्राचीन समृद्ध द्वारका में पानी के अन्दर भगवान कृष्ण की पूजा की. उन्होंने बाद में कहा कि यह एक दिव्य अनुभव था. आज़ादी के बाद किसी भी प्रधान मन्त्री ने देश पर उनके जितना प्रभाव नहीं डाला.

हम दो सप्ताह के लिए भारत के बिल्कुल पश्चिम में अरब सागर पर गुजरात प्रांत में यात्रा कर रहे हैं जो हज़ारों वर्षों से एक व्यापारिक क्षेत्र रहा है. नरेन्द्र मोदी ने इस सूबे पर 13 साल तक शासन किया. यह सूबा पूरे देश के विकास के लिए एक प्रकार की प्रयोग-शाला बन गई है. यहीं पर उनकी राष्ट्र-वादी हिन्दू राज्य की दृष्टि उभरी जो कम से कम राजनीतिक और आर्थिक रूप से महा-शक्तियों संयुक्त राज्य America और चीन के बराबर होगी. हम यह पता लगाना चाहते हैं कि जागृत महा-शक्ति किधर जा रही है. हम एक इन्द्रियों को भ्रमित करने वाली, लुभावनी और वीरान सड़क पर यात्रा कर रहे हैं जो अभी पूरी होने ही वाली है. धोलावीरा के पास नमक झील के ऊपर यह सड़क पाकिस्तान से केवल 40 kilometre दूर है. यह सड़क भारतीय प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टि-कोण का हिस्सा है. ऐसी कई अन्य परियोजनाओं की तरह इसका उद्देश्य देश के सुदूर कोने तक समृद्धि लाना है. इसे "स्वर्ग का मार्ग" (Road To Heaven) कहा जाता है. इस जगह की विशिष्टता का अनुभव करने के लिए हर साल लगभग 800,000 पर्यटक पाकिस्तान की सीमा के इस सुदूर कोने में आते हैं. यहां का सूर्यास्त, प्राकृतिक सुन्दरता और अद्वितीय आतिथ्य सत्कार पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण है.

एक पर्यटक कहता है: »मैं आपको एक बात बताऊं. वह समय आने वाला है जब भारत एक महा-शक्ति होगा. क्योंकि हमारे पास एक महान नेता हैं, मोदी. वे भारत के लिए सब कुछ करते हैं.«

रेगिस्तान के बीचों-बीच एक विशाल तम्बू शिविर सी संरचना है जो पहली नज़र में हैरान करने वाली है (The Tent City, Rann Utsav). season लगभग खत्म हो चुका है. 

hotel के manager, श्री अग्निहोत्री: सब से पहले तो मैं आपको खुल कर बताना चाहूंगा कि मैं किसी group आदि से जुड़ा नहीं हूं. लेकिन हमारे प्रिय प्रधान मन्त्री श्री मोदी को यह विचार तब आया जब वे यहां प्रधान मन्त्री थे. सब कुछ उनका विचार था और उन्होंने इसे लागू किया.

मिलनसार श्री अग्निहोत्री 400 tents वाले नमक रेगिस्तान के सब से बड़े परिसर के hotel प्रबन्धक हैं. एक तम्बू में रुकने का खर्च प्रति रात और व्यक्ति के हिसाब से 100 से 1000 Euro के बीच हो सकता है. भारत के 1.4 अरब से अधिक लोगों में से अधिकांश के लिए यह अप्राप्य है, जिन की सालाना प्रति व्यक्ति औसत आय लगभग 2000 Euro है. और फिर भी इसे एक प्रकार की सामाजिक परियोजना है, जैसा कि hotel प्रबन्धक ने हमें समझाया.

अग्निहोत्री: बेशक हम हम लाभोन्मुख हैं, मैं इस से इनकार नहीं करता. लेकिन इस से भी अधिक महत्वपूर्ण है यहां के स्थानीय लोगों की मदद करना. एक विनियमन कहता है कि हमें 75 प्रतिशत रोज़गार स्थानीय लोगों को देना होगा. श्री मोदी का आदर्श वाक्य है, समाज को वापस देना. यही सब से महत्वपूर्ण है.

यहां के ग़रीब किसान दिल्ली, मुम्बई या कलकत्ता जैसे महा-नगरों के अमीर पर्यटकों के लिए स्मारिका विक्रेता या hotel कर्मचारी बन गए हैं. वे यहां season के दौरान प्रति माह लगभग 100 से 200 Euro कमा सकते हैं. किसान के रूप में वे जो कमा सकते थे उससे कई गुणा. ठीक बगल में एक छोटा, सस्ता resort पूरी तरह से स्थानीय निवासियों द्वारा चलाया जाता है और भारत सरकार द्वारा वित्पोषित है.

सुभेब भादोमिया मुटो, resort manager: पहले से बड़ा अन्तर यह है कि बहुत से लोग अब ख़ुश हैं. वे अच्छा कमा रहे हैं. उनका जीवन बेहतर है. उनके सिर पर पक्की छत है और वे अपने बच्चों को स्कूल भेज सकते हैं. अब हर गांव में एक स्कूल है.

वे हमें नरेन्द्र मोदी की एक तस्वीर दिखाते हैं, जो 2010 में उद्घाटन के लिए आए थे.

सुभेब भादोमिया मुटो: मुझे बहुत गर्व है कि हमारे वर्तमान प्रधान मन्त्री यहां थे. वे अब भी सोचते हैं कि इस जगह पर आम लोगों का जीवन कैसे विकसित हो. हमें अधिक पर्यटक कैसे मिलें. यह हम सभी को बहुत गौरवांवित महसूस कराता है.

और उन्हें भी भारत के भविष्य को ले कर कोई सन्देह नहीं है.

सुभेब भादोमिया मुटो: भारत का भविष्य बहुत उज्ज्वल होगा. यह आज से भी बेहतर होगा. भारत जल्द ही महा-शक्ति बनेगा.

हम एक छोटे बन्दरगाह शहर कांडला के रास्ते पर हैं. जहां तक ​​नज़र जाती है, तट के किनारे समुद्री नमक निष्कर्षण basin हैं. भारत के लिए नमक का आर्थिक और राजनीतिक रूप से सदैव अत्यधिक महत्व रहा है. इसे सदियों से समुद्री जल से निकाला जाता रहा है. लेकिन British औपनिवेशिक शासकों ने नमक पर कर लगा दिया. बहुत कम लोग इसे वहन कर सकते थे. गुजरात का नमक भारत की आज़ादी की कुञ्जी बना. प्रांत से अरब सागर तक महात्मा गान्धी की नमक यात्रा British औपनिवेशिक साम्राज्य के अन्त की शुरुआत थी. अधिक से अधिक भारतीयों ने सविनय अवज्ञा के उनके आह्वान का पालन किया. भारत के प्रधान मन्त्री मोदी भी एक नए युग का आह्वान करने के लिए नमक march की स्मृति का उपयोग करते हैं.

नरेन्द्र मोदी: नमक march ने स्वतन्त्र भारत के लिए पवित्र भूमि तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. यह हमारी आज़ादी और अमृत काल में प्रवेश की शुरुआत थी.

मोदी भारत को एक पवित्र भूमि के रूप में देखते हैं. उनकी तरह RSS के सदस्यों के लिए भी भारत एक पवित्र भूमि है. सुबह के छह बजे ही राष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठन RSS के सदस्यों की कवायद शरू हो जाती है. उनका trademark बांस से बने लम्बे डण्डे हैं. यह lock-step में एक प्रकार का सैन्य अभ्यास है, जो स्वैच्छिक रूप से काम शुरू करने से पहले किया जाता है. एक commander आदेश देता है और सभी उस का पालन करते हैं. सभी लोग आस-पास से हैं. हर सुबह doctor, शिक्षक और कारीगर यहां इकट्ठा होते हैं.

ॠषि केश, commander RSS स्वयं-सेवक कोर: हम एक आदेश देते हैं और सभी को तुरन्त उस का पालन करना होता है. हर किसी का अपना स्थान है और हर किसी को प्रक्रियाओं को आत्मसात करना होता है. इस से एकाग्रता बढ़ती है. यह समाज को एक-जुट करने और राष्ट्र के लिए काम करने के बारे में है. राष्ट्र प्रथम.

1920 के दशक में RSS एक हिन्दू राष्ट्र-वादी आन्दोलन के रूप में उभरा. आज तक वर्दी इसकी याद दिलाती है. उन्हें "brown pants" कहा जाता है. लेकिन समाज पर प्रभाव कम था, जो आज बदल गया है. RSS के अब देश भर में लगभग छह million सदस्य हैं. और हर दिन और भी सदस्य जुड़ रहे हैं.

भरत ढोकाई, निदेशक, RSS campus: हम भारत को एक नए स्तर पर ले जाना चाहते हैं. हम हर चीज़ में विकास करना चाहते हैं: शारीरिक, मानसिक और समाज की एकता की दृष्टि से भी. हमें समाज को ऊंचे स्तर पर ले जाना है. 'सैन्य अभ्यास' 'राष्ट्रीय सशक्तिकरण' का एक छोटा, यद्यपि महत्वपूर्ण हिस्सा है. हमें भारत को मजबूत बनाना होगा. हर नागरिक सशक्त होगा तो वह राष्ट्र से जुड़ेगा. और यहां हम उन्हें राष्ट्र से जोड़ते हैं. हम बीज तैयार करते हैं. क्योंकि अगर बीज अच्छे होंगे तो पेड़ भी अच्छा होगा.

और यहां बीज का अर्थ समझाने के लिए श्री धोकाई हमें एक कमरे में ले जाते हैं जहां युवा जोड़ों को छोटे, मजबूत हिन्दू पैदा करने के लिए तैयार किया जा रहा है.

भरत ढोकाई: यहीं से हम पूरे भारत को मजबूत बनाना शुरू करते हैं. धर्म-ग्रन्थों में अभिमन्यु की कहानी है, जिस ने गर्भ में रहते हुए ही युद्ध कौशल विकसित कर लिया था. इसी लिए निषेचन से 90 दिन पहले गर्भाशय को प्रशिक्षित किया जाता है, हर चीज़ को नर्म बनाया जाता है. इस के बाद महिलाएं और पुरुष पूरी तरह से स्वयं सफ़ाई करते हैं. ऐसा होने पर ही निषेचन होगा. हम उन्हें ऐसा करने के लिए थोड़ा समय देंगे.

यह एक प्रकार से जन्म-स्थान है. युवतियों का एक समूह, जो पहले ही निषेचन-पूर्व प्रक्रिया पूरी कर चुकी हैं, अगले कमरे में एकत्रित हो गई हैं. अगला कदम भ्रूण को सही ढंग से समायोजित करना है.

हिना घात्री, भावी मां: हम एक ऐसे बच्चे का निर्माण करते हैं जो गर्भ में सभी मूल्यों और परम्पराओं को प्राप्त करता है. जब वह दुनिया में आएगा, तो उसे पहले से ही हर चीज़ के बारे में पता चल चुका होगा और वह हमारे देश से गहरा जुड़ाव महसूस करेगा.

वे फिर अपने भ्रूणों के लिए एक साथ मन्त्र गाते हैं ताकि कुछ हफ़्तों या में राष्ट्र और हिन्दू धर्म के प्रति सही दृष्टि-कोण रखने वाले बच्चे पैदा हों: शहीदों की श्रद्धाञ्जलि में गूंजती है इंकलाब की आवाज़! खून से भरे हुए अखण्ड भारत की प्राप्ति ही हिन्दू राष्ट्र का सपना है. समर्थ हिन्दू, समर्थ भारत.

एक आदमी हमारे साथ जुड़ गया. 

मदन लाल, नमक व्यापारी और संरक्षक हमें समझाते हैं कि इस गीत के माध्यम से भ्रूणों के लिए गाए जा रहे सन्देश को कैसे समझा जाए: »यह भारत को फिर से महान बनाने के बारे में है. यह भारत के सभी हिस्सों के एकीकरण के बारे में है. यह अखण्ड भारत, मूल भारत के बारे में है. इस से मेरा मतलब है कि आज का पाकिस्तान, बांग्लादेश, Myanmar, सब कुछ फिर से भारत का हिस्सा होगा. ये इन लोगों के सपने हैं, जो वे अपने बच्चों में गर्भ में ही रोपित कर रहे हैं. हमारा मुख्य उद्देश्य भारत में शिक्षा को वापस लाना है. वर्तमान में हमारी शिक्षा प्रणाली British औपनिवेशिक काल से चली आ रही है. और हम ने उसे आज़ादी के बाद भी जारी रखा. लेकिन वह हमारी जड़ों से जुड़ी नहीं है.«

मदन लाल एक नमक व्यापारी, RSS सदस्य और संस्था के financer हैं, जिस में एक प्राथमिक विद्यालय और एक high school भी शामिल है. भारत में अब लगभग 30,000 ऐसे शैक्षणिक संस्थान हैं. यहां ​​छोटे बच्चों के लिए शक्ति प्रशिक्षण और शारीरिक व्यायाम के साथ साथ प्रकृति प्रेम भी सिखाया जाता है.

इस में संस्कारों की बड़ी भूमिका है. हर दिन कक्षा शुरू होने से पहले, बुज़ुर्ग अग्नि अनुष्ठान के माध्यम से पर्यावरण को शुद्ध करने के लिए एक साथ बैठते हैं. श्री ढोकाई हमें बताते हैं कि यहां पढ़ना और लिखना सिखाने की बजाए व्यावहारिक और आध्यात्मिक कौशल को प्राथमिकता दी जाती है. उदाहरण के लिए, क्षेत्र की जड़ी-बूटियों और पौधों के साथ पारम्परिक रूप से स्थानीय भोजन कैसे तैयार किया जाए. यह खास कर लड़कियों के लिए है. छोटे बच्चे खेल खेल में देवताओं और उनकी कहानियों के बारे में जानने लगते हैं. और हिन्दू धर्म में बहुत सारे देवी-देवता हैं. बचच्े हर सुबह कक्षा शुरू होने से पहले कसम खाते हैं: 
हम देश की गरिमा और सम्मान के लिए मिल कर काम करेंगे. हम अपने देश के सम्मान की रक्षा करेंगे. भारत माता की जय.

यह सब एक गूढ़ राष्ट्रीय सांप्रदाय के विस्तार की तरह नज़र आता है. वफ़ादारी की शपथ, भ्रूण के लिए गायन, प्रजनन और शुद्धिकरण अनुष्ठान, पुरुषों के अर्ध-सैनिक खेल.

आप क्या प्राप्त करना चााहते हैं?

भरत ढोकाई: मुक्ति अर्थात मोक्ष. अनन्त पुनर्जन्म के कष्ट से मुक्ति. यही मानव जीवन का चरम लक्ष्य मोक्ष है. हमारी आध्यात्मिक शिक्षा और पालन-पोषण हमें मोक्ष के इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करता है. मनुष्य ईश्वर और राष्ट्र के साथ एक हो जाता है. हम हमारे पास आने वाले लोगों के बचपन से वयस्कता तक विकास का अवलोकन करते हैं और उनकी रुचियों के आधार पर उनका उपयोग करते हें. श्री मोदी की रुचि राजनीति में थी. इस लिए उन्हें हमारे मूल्यों, देश-भक्ति और हिन्दुत्व के साथ राजनीति में भेजा गया. अब वह दुनिया को बदलने के लिए काम कर रहे हैं.

RSS भारतीय प्रधान-मन्त्री का वैचारिक आधार है. वह RSS में पले-बढ़े. जब नरेन्द्र मोदी ने January में बड़े धूम-धाम से अयोध्या में नव-निर्मित राम मन्दिर का उद्घाटन किया, तो उन्होंने देश में कट्टर-पन्थी हिन्दुओं से किया गया एक पुराना वादा पूरा किया. RSS के नेता मोहन बागवत हमेशा उनके साथ थे. नया मन्दिर सदियों पुरानी मस्जिद के खण्डहरों पर बनाया गया था जिसे पहले हिन्दू भीड़ ने तोड़ दिया था. इसे हिन्दू संस्कृति की श्रेष्ठता का प्रतीक बनना चाहिए. सिर्फ़ RSS की पसन्द के अनुसार.

कांडला में अपने सुबह के व्यायाम के बाद, पुरुष निष्ठा की शपथ लेते हैं. मातृ-भूमि के प्रति एक प्रकार की धार्मिक-राष्ट्र-वादी शपथ. अन्य बातों के अलावा वे कहते हैं: हे प्यारी मातृ-भूमि, मैं तुम्हें सलाम करता हूं. आप (हिन्दुओं की भूमि) के माध्यम से मेरी ख़ुशी बढ़ती है. हे भगवान, हिन्दू जाति के शक्तिशाली रक्षक, हम श्रद्धा-पूर्वक आपको नमस्कार करते हैं. लोगों के अंगारे हमारे दिलों में लगातार जलते रहें. हमारी एकता हमारे कार्यों के लिए विजयी शक्ति हो.

वे आडम्बरपूर्ण धार्मिक राष्ट्र-वाद के साथ अफ़गानिस्तान से ले कर Myanmar तक फैला हुआ एक नया, मजबूत हिन्दुस्तान बनाना चाहते हैं. ऐसे देश में जहां करोड़ों लोगों के पास अभी भी पानी नहीं है. ना शौचालय, ना बिजली. एक ऐसा देश जहां पवित्र गाएं भी सब से दयनीय स्थिति में रहती हैं. यह आर्थिक सुधार के बिना नहीं हो सकता.

लेकिन वे इस पर भी काम कर रहे हैं. भारत अपने व्यापार घाटे को कम करने के लिए और आयात से निर्यात राष्ट्र की ओर जाने के लिए बड़े कदम उठा रहा है और अपने उद्योगों को विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध है. हम ने मुञ्जाल पटेल से मिलने की व्यवस्था की. वह गुजरात में एक मध्यम आकार की दवा company, Lincoln pharma के प्रमुख हैं. उनका कारोबार खूब फल-फूल रहा है. Lincoln pharma सहित पूरा भारत एक स्वर्णिम युग का सामना कर रहा है. Lincoln pharma में 1,700 कर्मचारी हैं. वे टीके, दर्द निवारक और मलेरिया की गोलियां बनाते हैं. उनके पास 500 से अधिक उत्पाद उपलब्ध हैं. घरेलू बाज़ार के अलावा वे पूरी दुनिया को आपूर्ति करते हैं. लेकिन निर्यात मुख्य रूप से Asia, Africa और दक्षिण America को होता है.

मुञ्जाल पटेल: मुञ्जाल पटेल, CEO, Lincoln pharma: हम अगले 15 से 20 वर्षों में आसानी से तीन से चार गुना बढ़ सकते हैं. सब से महत्वपूर्ण बात यह है कि 15, 20 वर्षों से हमारे यहां गुजरात में एक स्थिर सरकार और प्रधान-मन्त्री की विचार-धारा रही है. जब श्री मोदी प्रधान-मन्त्री बने तो उन्होंने सपने बोए थे. आज वे पूरे देश के प्रधान-मन्त्री हैं. लेकिन अपने समय के दौरान उन्होंने जो विचार, निवेश बोए थे, वे अब गुजरात के सभी उद्योगों में फल दे रहे हैं. और वे देश के लिए और खास कर अर्थ-व्यवस्था के लिए बहुत काम कर रहे हैं. उदाहरण के लिए, राज-मार्गों का निर्माण. उनके द्वारा बनाए गए गलियारे बुनियादी ढांचे का हिस्सा हैं और बाक़ी हर चीज़ के लिए बुनियादी आवश्यकता है. हम ने नहीं सोचा था कि यह 2050 तक होगा और यह अभी 2024 चल रहा है. हम पहले अपना माल सड़कों के माध्यम से नहीं पहुंचा सकते थे. अब हमारे पास सड़कें हैं और सब कुछ बहुत सुरक्षित और आसान है. हमारी company विशेष रूप से नौकरशाही में कमी के कारण पूरी गति से चल रही है. जटिल 'कर प्रणाली' को मौलिक रूप से सरल बनाया गया है. यह सब उस अवधारणा का हिस्सा है जिसे प्रधान-मन्त्री शक्ति के साथ आगे बढ़ा रहे हैं. make in India, वह उन का सपना था. और तब आप वास्तव में इसे केवल एक सपने के रूप में ही देख सकते थे. लेकिन उन्होंने ऐसा कर दिखाया. वे make in India पर काम कर रहे हैं और हम इस में उनका समर्थन करते हैं. क्योंकि यह हमारे लिए भी अच्छा है, क्योंकि यहीं से हम अपनी आय उत्पन्न करते हैं.

और जब श्री पटेल नरेन्द्र मोदी के बारे में बात करते हैं तो सच-मुच ख़ुशी से झूम उठते हैं. फिर हम उनसे पूछते हैं कि उनकी राय में, मोदी हर काम बाक़ी सभी से बेहतर क्यों करते हैं.

मुञ्जाल पटेल: उन्होंने जो समझा, और यह मेरी विचार-धारा भी है, वह यह है कि आप केवल उसी उद्देश्य के लिए काम कर सकते हैं जो आपके लिए महत्वपूर्ण है. और भारत उनका बच्चा है. Lincoln pharma मेरा बच्चा है, मेरी company है, मेरा जुनून है. हर किसी में किसी ना किसी चीज़ का जुनून सवार होता है. उनका जुनून भारत है.

एक प्रधान मन्त्री जिस देश पर शासन करता है उस के प्रति जुनूनी है, pharmaceutical उद्यमी इसे इसी तरह देखता है. हम प्रांत के दक्षिण में सूरत की ओर जा रहे हैं. एक ऐसा स्थान जिस का उद्योग पहले से ही विश्व बाज़ार में अग्रणी है. एक ऐसे उत्पाद के साथ जो अद्वितीय सुन्दरता का प्रतीक है. हमारे सामने मेज़ पर लगभग 250,000 Euro मूल्य के मुट्ठी भर कच्चे हीरे हैं.

मेहुल सवाणी, सावनी diamonds: हीरे का दाम उस के आकार और सफ़ाई से तय होता है. वह जितना बड़ा होगा, उतना ही महंगा होगा. यह इस पर भी निर्भर करता है कि वह कितना साफ़ है. उसमें काले कण नहीं होने चाहिए. वह दूधिया नहीं होना चाहिए.

मेहुल सवानी company की संस्थापक मथुरबाई सवानी के बेटे हैं, जिन्होंने हीरों से अपनी किस्मत बनाई. और जिस ने उन्हें यहां सूरत में विश्व बाज़ार पर हावी होने में योगदान दिया है. आप देख सकते हैं कि युवा सावनी कितनी गौरवांवित हैं.

मेहुल सवानी: हम 100 में से 90 हीरों की processing करते हैं. 90 प्रतिशत से अधिक तराशे हुए हीरे सूरत से आते हैं.

पूरी दुनिया में?

हां, पूरी दुनिया में.

जो पत्थर हमारे सामने पड़े हैं, वे जल्द ही Berlin, New York, London या Tokyo की धनी महिलाओं की उंगलियों या ज़ञ्जीरों में समा जाएंगे. या किसी अमीर rapper के के दांतों में.

हम श्री सवानी से पूछते हैं कि वे यहां सूरत में विश्व बाज़ार में अग्रणी क्यों हैं.

मेहुल सवानी: सब से पहले, भारत में श्रम बहुत सस्ता है. दूसरे, हमारी industry हर साल सरकार से बात करती है. वह हमें प्रोत्साहन, subsidy जैसे कुछ लाभ देती है. .

इस से पहले कि हम company के संस्थापक, उनके पिता से मिलें, हमें company के चारों ओर नज़र डालना चाहते हैं. और वे हमें एक बड़ा, बिना polish किया हुआ कच्चा हीरा दिखाते हैं जिस की स्थिति अभी scan की जा रही है. फिर एक computer program हीरे की सम्भावित कटौती का विश्लेषण और अनुकूलन करता है. ताकि जितना सम्भव हो उतना कम अपशिष्ट पैदा हो.

मेहुल सवानी: हम ने अलग-अलग कट और आकार आज़माए और इन दो आकृतियों पर निर्णय लिया.

एक बार जब यह स्पष्ट हो जाता है कि अधिकतम सम्भव उपज और अधिकतम मूल्य प्राप्त करने के लिए पत्थर को कैसे काटा जाना है, तो पत्थरों को काटा जाता है. वहां उन्हें सटीक उच्च-प्रदर्शन वाले lasers द्वारा computer द्वारा निर्धारित भागों में तोड़ दिया जाता है. काटने के बाद हीरे को तराशा जाता है.  सावनी diamonds में 1,000 से अधिक कर्मचारी हैं, जो पूरे शहर में कई स्थानों पर फैले हुए हैं.

हम ने उनसे पूछा कि वह भारत की ताकत क्या मानते हैं.

भारत एक धार्मिक देश है. हम भगवान में विश्वास करते हैं और हम भगवान पर भरोसा करते हैं. हम जब भी अपना काम शुरू करते हैं तो सब से पहले भगवान से प्रार्थना करते हैं. हमें अपनी ऊर्जा ईश्वर से मिलती है.

कौन सा भगवान?

बहुत सारे देवता हैं. मैं स्वामीनारायण में विश्वास करता हूं. हम सभी देवताओं में विश्वास करते हैं लेकिन हमारे मार्ग-दर्शक स्वामीनारायण हैं. अन्य लोग भगवान शिव में विश्वास करते हैं.

यही सब हिन्दू धर्म है, है ना?

हां, वह हिन्दू धर्म है.

नीचे प्रवेश क्षेत्र में, श्री सवानी हमें अपने पिता, company के संस्थापक की परियोजनाओं और धर्मार्थ कार्यों की प्रशंसा करते हुए एक board दिखाते हैं. एक प्रमुख मित्र के साथ भी तस्वीर है.

यहां वे प्रधान-मन्त्री के साथ हैं?

हां, वह प्रधान मन्त्री हैं.

क्या वे उसे व्यक्तिगत रूप से जानते हैं?

हां, मैं आपको उन दोनों का एक video भी दिखा सकता हूं.

और वह इमारत बहुत बड़ा दिख रही है. वह क्या है?

हां, यह इमारत Pentagon से भी बड़ी है.

Pentagon से भी बड़ी?

हां. यह दुनिया की सब से बड़ी कार्यालय इमारत है.

विश्व की सब से बड़ी इमारत सूरत diamond exchange है. उम्मीद है कि जल्द ही 4,000 से अधिक व्यापारी यहां आएंगे और हीरों के विश्व व्यापार को सम्भालेंगे. 660,000 वर्ग meter में फैला यह व्यापारिक केन्द्र अमेरिकी रक्षा विभाग से लगभग 40,000 वर्ग meter बड़ा है. Pentagon, जिस के पास 1943 से record था.

हीरे के आदान-प्रदान का उद्देश्य भारत की अग्रणी आर्थिक शक्ति बनने की महत्वाकांक्षा को रेखांकित करना है. और फिर हम सावनी senior से मिलते हैं, सावनी senior.

सवाणी diamonds के संस्थापक मार्थुबाई सवाणी: सूरत अब तक हीरा प्रसंस्करण का केन्द्र रहा है, लेकिन हीरा व्यापार का केन्द्र नहीं है. नया exchange सूरत को वैश्विक हीरा व्यापार का केन्द्र बना देगा. और हम आभूषणों के उत्पादन और हीरों की बिक्री का केन्द्र भी बनेंगे.

यह इमारत भारतीय महानता के विचार का प्रतीक है, बिल्कुल उद्घाटन में आए अपने दोस्त नरेन्द्र मोदी की पसन्द के मुताबिक. और सवानी senior भी अपने मित्र, प्रधान मन्त्री के बारे में बात करते समय प्रसन्न हो जाते हैं. जिस ने 13 वर्षों तक प्रांत पर शासन किया.

मार्थुबाई सवाणी: उन्होंने सब से पहला काम गुजरात में जल प्रबन्धन की शुरुआत करना किया. हम ने इस में उनका समर्थन किया. साथ ही उन्होंने हर गांव में बिजली पहुंचाने का काम किया है. बाद में जब भाई नरेन्द्र प्रधान-मन्त्री बने तो गुजरात पूरे देश के लिए एक model बन गया.

प्रधान मन्त्री के साथ अपनी निकटता दिखाने के लिए श्री सवानी के पास बहुत सारे पुरस्कार हैं. और सरदार पटेल की एक सोने की मूर्ति भी. हम उससे पूछते हैं कि यह क्या है.

मार्थुबाई सवाणी: इस दुनिया में आठ अरब लोग हैं. इन में से 1.4 अरब भारतीय हैं. सरदार पटेल ने आज़ादी के लिए सभी भारतीयों को एक साथ लाने का महान काम किया. यह प्रतिमा एक महान विचार है, पूरी दुनिया को इसे देखना चाहिए. यह दुनिया का केन्द्र होना चाहिए. यह हमारे प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी का दृष्टि-कोण है.

संयमित घमण्ड के साथ वह फिर कहते हैं: मैं उन लोगों में से एक था जिन्होंने सरदार पटेल की यह प्रतिमा के विचार की शुरुआत की थी.

यह विचार सिर्फ़ किसी प्रतिमा के लिए नहीं, बल्कि अब तक बनी सब से बड़ी प्रतिमा के लिए है. भारतीय स्वतन्त्रता के एक प्रतीक से. इसे दूर से देखने पर भी नज़र-अन्दाज़ नहीं किया जा सकता. इसका आधार 240 meter ऊंचा है. Cologne cathedral से 80 meter से अधिक ऊंचा. यह सूरत और प्रांतीय राजधानी अहमदाबाद के बीच ग्रामीण इलाके में 2018 में पूरा हुआ. तब से अब तक यहां हर साल लाखों पर्यटक आ चुके हैं.

एक प्रयटक: यह New York की statue of liberty से भी बड़ी है. यह दुनिया की सब से बड़ी मूर्ति है. चीन की बुद्ध प्रतिमा से भी बड़ी.

क्या आपको इस पर गर्व है?

प्रयटक: नि:सन्देह इस से हमें बहुत गर्व महसूस होता है. यह हमारे प्रधान मन्त्री का दृष्टि-कोण है. उस के पास एक सपना है और उन्होंने उसे हकीकत में बदल दिया है. हमें इस पर बहुत गर्व है.

महात्मा गान्धी और नेहरू के साथ, पटेल भारत की स्वतन्त्रता की राह पर चलने वाले मजबूत व्यक्तियों में से एक थे. लेकिन गान्धी और नेहरू के विपरीत, पटेल व्यावहारिक कारणों से एक हिन्दू राष्ट्र चाहते थे.

नरेन्द्र मोदी सहित हिन्दू राष्ट्र-वादियों द्वारा आज विशेष करुणा और धूम-धाम के साथ उनका महिमा-मण्डन किया जाता है. क्योंकि वे इतिहास में एक शुरुआती बिन्दु की तलाश में हैं. कई आलोचक इसे इतिहास पर कब्ज़ा करने का एक अनुचित प्रयास मानते हैं. गान्धी जी के घनिष्ठ मित्र पटेल कभी भी हिन्दू राष्ट्र-वादी नहीं थे. लेकिन यह विशाल प्रतिमा आगन्तुकों के लिए अपना उद्देश्य पूरा करती नज़र आती है.

प्रयटक: यह शानदार है और मैं बहुत रोमांचित हूं. मैं इसकी प्रशंसा करते नहीं थकता, हमें इतनी अद्भुत प्रतिमा देने के लिए मैं श्री मोदी का बहुत आभारी हूं. मोदी ने यहां यह सब सम्भव बनाने के लिए बहुत कुछ किया है. इस मूर्ति को पूरी दुनिया जानती है. ये सब से बड़ा है और ये बहुत अच्छा है.

एक ऐसा देश जो सरकार के मुखिया के नशे में है जो उसे नई महानता की ओर ले जाना चाहता है.

हम माण्डवी के रास्ते पर हैं. एक ऐसी जगह जहां अतीत और वर्तमान एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. बन्दरगाह में हमें अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा है. बन्दरगाह basin के तट पर, जो कम ज्वार के समय लगभग खाली हो जाता है, दर्जनों विशाल लकड़ी की नावें निर्माणाधीन हैं. जैसे ही हम दोपहर की गर्मी में पहुंचते हैं, पूरा दृश्य ऐसा लगता है जैसे यह किसी अन्य समय से आया हो. लकड़ी के तख्तों को मोड़ कर लम्बे, भारी कीलों से पतवार से जोड़ा जाता है. यहां हर चीज़ हाथ से बनी है.

मुहम्मद फारुख, जहाज़ मालिक: हमारे यहां के लोग ज़्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं और पेशेवर engineer नहीं हैं. आप बस कागज़ के एक टुकड़े पर कुछ चित्र बना कर काम शुरू कर देते हैं. हम लकड़ी से काम करना जानते हैं, इस लिए उस का उपयोग करते हैं. हमारे पूर्वजों ने पीढ़ियों से इसी तरह काम किया है. अन्तर यह है कि जब मैं बच्चा था, तब 50 टन क्षमता वाली नावें हुआ करती थीं. आज ये 1,500 से 1,700 टन की क्षमता रखती हैं. वे अब सच-मुच बड़े हो गई हैं.

श्री फारुख एक जहाज़ मालिक हैं. उनके पास पहले से ही ऐसे छह माल-वाहक जहाज़ हैं. हम उससे पूछते हैं कि वे इन जहाज़ों से क्या और कहां ले जाते है.

फारुख: . हम दुबई, यमन, अमीरात आदि तक चावल और चीनी ले जाते हैं.

आगे भी?

हां, Africa.

पसीने से तर मेहनत की आवाज़ पतवार के नीचे से गूंजती है. तेल से सने कपास को तख्तों के बीच खाली जगह में घुसाने के लिए मज़दूर हथौडे और मूसलों का इस्तेमाल करते हैं. ठीक वैसे ही जैसे वे सैकड़ों वर्षों से करते आ रहे हैं.

आप नाव पर कितने समय से काम कर रहे हैं?

जहाज़ दो साल से निर्माणाधीन है. फिलहाल हम सब कुछ सील करने की प्रक्रिया में हैं ताकि बाद में नाव में पानी ना जाए.

अपने नंगे हाथों से ऐसा माल-वाहक जहाज़ बनाने में श्रमिकों को लगभग तीन साल लग जाते हैं. और फिर भी समुद्र में जाने वाले ये माल-वाहक जहाज़ कीमत में बेजोड़ हैं. engine, cabin, सब कुछ मला कर इस तरह के एक माल-वाहक की कीमत लगभग 300,000 Euro के बराबर होती है. एक कर्मचारी प्रतिदिन लगभग पांच Euro कमाता है.

हम श्री फारुख से पूछते हैं कि वे मोदी और उनकी राजनीति के बारे में क्या सोचते हैं.

और हमारी यात्रा में पहली बार, हमें महसूस हुआ कि श्री फारुख जैसे लोग मोदी के बारे में सरल सवालों से शर्मिन्दा हो रहे हैं.

मोदी अच्छे हैं.

वह अच्छे क्यों है?

उनकी party लम्बे समय से यहां सत्ता में है.

वे क्या अच्छा कर रहे हैं?

वे हर काम अच्छे से करते हैं. वे नई तकनीकें लाते हैं. सब कुछ काम करता है. वे नई factories लाते हैं.

क्या ऐसे लोग हैं जो उसे पसन्द नहीं करते?

ऐसे लोग हो सकते हैं जो उसे पसन्द ना करें, लेकिन हर कोई हर किसी को पसन्द नहीं करता. ऐसे लोग भी हो सकते हैं जो उसे पसन्द करते हों और वे भी जो उसे पसन्द ना करते हों.

क्या ऐसी कोई बात है जो आपको उस के बारे में पसन्द नहीं है?

नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है.

वे कुछ भी आलोचनात्मक नहीं कह रहे. लेकिन उस के बाद जो हुआ वह साक्षात्कार से कहीं अधिक कहता है. सुनने वाले एक कर्मचारी ने मांग की कि हम मोदी के बारे में बयान हटा दें. और पहली बार हमें मुसलमानों में मोदी के प्रति डर का एहसास हुआ.

अब हम अरब सागर पर सथित माण्डवी को को छोड़ते हैं. एक ऐसी जगह जो शायद ही इस से अधिक शांत प्रतीत हो सकती है. हम खुद से पूछते हैं कि सरकार के मुखिया का डर कहां से आता है. इस के बारे में हमें अप्रत्याशित रूप से गुजरात प्रांत की राजधानी अहमदाबाद में पता चला. हाल के भारतीय इतिहास में सब से क्रूर अपराधों में से एक यहीं 2002 में हुआ था. हम Muslim इलाके में रुकसाना रशीद कुरैशी की तलाश में हैं. वह उस समय 16 वर्ष की थी.

रुकसाना राशिद कुरैशी, प्रत्यक्ष-दर्शी: बच्चों को पीटा गया, काटा गया और जला दिया गया. लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया, उन्हें काटा गया और जला दिया गया. यह बहुत क्रूर था.

यह अब से 20 वर्ष से अधिक पहले की बात है. और वह अपने घर में हमें वह स्थान दिखाती है जहां उसने अपनी मां और अपनी बहन को खोया था.

हम सब यहीं थे. मेरी दो बहनें और मेरे तीन छोटे भाई. तभी हम ने दंगाइयों के आने की आवाज़ सुनी. मस्जिद में पहले से ही आग लगी हुई थी. बाहर जो लोग थे, सभी मारे गए. फिर दंगाई यहां आए और उन सभी को मार डाला जो भाग नहीं सके. मेरी मां और मेरी छोटी बहन की हत्या कर दी गई.

क्या police ने आपकी मदद नहीं की?

अगर police ने मदद की होती तो ऐसा कुछ नहीं होता. मेरी बहन और मां नहीं मरी होतीं, लेकिन police हत्याओं में शामिल थी. अगर police ने हस्तक्षेप किया होता तो इतने लोगों की जान नहीं जाती. बच्चे, गर्भवती महिलाएं. उन्होंने उनका पेट काट दिया और बच्चों को चाकू मार दिया. यह सब बहुत बुरा था.

February 2002 में एक उत्तेजित हिन्दू भीड़ ने Muslim इलाके में march किया. और ऐसे अपराध किए जो कल्पना से परे हैं. स्वतन्त्र जांच आयोगों ने तब जातीय सफ़ाए के प्रयास की बात की. हज़ारों मौतों के साथ. कोई सटीक संख्याएं उपलब्ध नहीं हैं. हम ने मौलाना अब्दुल सलाम से मिलने की व्यवस्था की. वह समुदाय के इमाम हैं और उस समय वह भी वहीं थे.

मौलाना अब्दुल सलाम, इमाम नूरानी मस्जिद: उन्होंने हमें चारों तरफ़ से घेर लिया. उनकी संख्या हम से 100 गुणा अधिक थी. उन्होंने सुबह करीब 11 बजे मस्जिद पर धावा बोल दिया. जो कोई भी उनके रास्ते में आया उसे चाकू मार कर मार डाला. करीब दो बजे उन्होंने मस्जिद पर हिन्दू झण्डा फहराया.

यह क्रूर उन्माद मुसलमानों के एक समूह के साथ विवाद के बाद रेल गाड़ी में 59 हिन्दुओं की जल कर हुई मौत से भड़का था.

मौलाना अब्दुल सलाम: सूबे के प्रधान-मन्त्री ने तुरन्त और बिना सबूत के पाकिस्तान द्वारा आतंकी हमले की बात कही.

यह हिंसक ज्यादतियों का शुरुआती संकेत था, जैसा कि कई लोग इसे देखते हैं. उस समय प्रधान-मन्त्री नरेन्द्र मोदी थे.

मौलाना अब्दुल सलाम: यह सब तब शुरू हुआ जब वे गुजरात आए. उसने सब कुछ देखते हुए भी कुछ नहीं किया.

यहां कई लोगों का मानना ​​है कि मोदी ने police को रोक लिया और दंगाइयों को उन्माद करने दिया. हम ने शहर में भारत के सब से प्रसिद्ध नागरिक अधिकार वकीलों में से एक से मिलने की व्यवस्था की. आनन्द-वर्धन याग्निक संवैधानिक न्यायालय के समक्ष नागरिकों का प्रतिनिधित्व करते हैं. उन्होंने हिन्दू हिंसा के कई पीड़ितों का भी प्रतिनिधित्व किया है. उन्होंने interview से पहले हमें बताया था कि उन्हें अपने शब्दों को ध्यान से तौलना होगा. खास कर जब बात नरेन्द्र मोदी की हो.

आनन्द-वर्धन याग्निक, वकील: अब तक किसी भी अदालत ने मोदी को दंगों में शामिल होने का दोषी नहीं पाया है. गुजरात में कई लोगों का मानना ​​है कि नरेन्द्र मोदी विफ़ल रहे. वह अल्प-संख्यक की रक्षा करते हुए दंगा रोकने में विफ़ल रहे. यही एकमात्र कारण था कि अशांति सात - आठ महीनों तक चली, जिस में हज़ारों मौतें हुईं. और इसी लिए मैं मानता हूं कि दंगों के लिए नरेन्द्र मोदी ज़िम्मेदार हैं. क्योंकि वे इसे रोकने में असफ़ल रहे. और दंगे भड़कने के बाद, वे लोगों की रक्षा करने में विफ़ल रहे.

उस समय संयुक्त राज्य America और great Britain ने भी इसे इसी तरह देखा था. धार्मिक स्वतन्त्रता के गम्भीर उल्लंघन के कारण नरेन्द्र मोदी को दस वर्षों तक देश में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई. लेकिन यह सब लम्बे समय से भुला दिया गया है. नरेन्द्र मोदी फिर से चुनाव के लिए तैयार हैं. बदलती दुनिया में एक रणनीतिक सांझेदार के रूप में उनकी ज़रूरत है. हम ने श्री याग्निक से पूछा कि हम गुजरात में मोदी के समय से क्या सीख सकते हैं, और उनका जवाब आश्चर्य-जनक है.

आनन्द-वर्धन याग्निक: मैं एक German television station से कहना चाहूंगा कि हम नहीं चाहते कि प्रधान-मन्त्री Hitler की तरह बनें. Hitler के शासन-काल में यहूदी आबादी के साथ भेद-भाव किया गया था. हम नहीं चाहते कि हमारे प्रधान-मन्त्री अल्प-संख्यकों के साथ भेद-भाव करें. हम उनसे यही उम्मीद करते हैं.

हालांकि यहां Muslim quarter में स्थिति में सुधार होने की उम्मीद कम है.  जब तक मोदी और RSS cadre संगठन के उनके विचार देश के भाग्य का निर्धारण करते रहेंगे, तब तक हिन्दू बहुमत और उस के नेता का डर बना रहेगा.

रुखसाना: हम क्या कर सकते हैं? हमें यहीं रहना होगा और असुरक्षित महसूस करना होगा. जब भी कोई घटना घटती है तो हम डर जाते हैं. हमारे पास कोई पैसा नहीं है. हमें कहां जा सकते हैं? हमारे लिए कोई दूसरी जगह नहीं है.

भारत में 20 करोड़ से अधिक Muslim रहते हैं, जो नरेन्द्र मोदी के तहत एक हिन्दू राज्य में बदलने की प्रक्रिया में है. मोदी देश को ताकत के साथ भविष्य की ओर ले जाना चाहते हैं और नया भारत बनाना चाहते हैं. और साथ ही भारतीय इतिहास में एक महान नेता के रूप में जाने जाते हैं. लेकिन इस के लिए उन्हें समाज के समर्थन की ज़रूरत है, कम से कम बहुमत की. और वे जानता है कि इसे कैसे प्राप्त करना है. जैसा कि हमें यात्रा के दौरान एहसास हुआ, गुजरात एक प्रयोग-शाला था और है. मोदी के एक जागृत विशाल व्यक्ति के दृष्टि-कोण के लिए जो धार्मिक-आध्यात्मिक हिन्दू राष्ट्र-वाद से मुक्ति के मार्ग पर प्रगति के लिए अपनी ऊर्जा प्राप्त करेगा.

रविवार, 5 मई 2024

यूनानी गायक गाता है हिन्दी गाने

Stuttgart में रहने वाले यूनानी मूल के 30 वर्षीय Sakis Tsapakidis एक गायक और संगीतकार हैं जो अपनी मातृ-भाषा सहित हिन्दी, Spanish, अरबी और German भाषा में गाते हैं और drum, keyboard, यूनानी violin, ताल, अरबी drum और भारतीय ढोल भी बजाते हैं. वे अपने हिन्दी गायन के सफ़र के बारे में बताते हैं.
2001 से मैं अपने शहर Stuttgart में हर साल एक circus में भाग लेने लगा और उनकी मदद करने लगा. circus के कलाकारों और ringmaster से मेरी दोस्ती हो गई जो आज भी बरकरार है. 2005 में जब मैं वहां गया तो मैं ने एक गाना सुना 'सूरज हुआ मद्धम'. यह गाना इतना मोहक था कि मैं इस गाने के लिए पागल हो गया. मैं ने निर्देशक से पूछा कि क्या मुझे यह CD मिल सकती है, तो उसने मुझे वह CD उपहार में दे दी. इस तरह मुझे Bollywood की लत लगनी शुरू हो गई. मैं ने शाहरुख खान की films से लगभग सभी audio CD ख़रीदीं और लगातार अपने Walkman CD player पर घंटों सुनने लगा. जब मैं ने स्कूल में अपने सब से अच्छे दोस्त आज़ाद को 'सूरज हुआ मद्धम' गाना सुनाया, तो वह और उस की बहन कहने लगे कि वे पहले से ही सभी Bollywood films और गानों को जानते हैं और पसन्द करते हैं. फिर हम ने स्कूल में एक छोटा सा Bollywood show तैयार करने की सोची और शाहरुख खान की films के dance scene की नकल करनी शुरू कर दी. इस के लिए हम बहुत बार class में भी अनुपस्थित रहते थे और शिक्षक नाराज़ हो जाते थे.

2007 में मुझे Stuttgart में Sommerfestival der Kulturen नामक एक उत्सव के बारे में पता चला. वहां मेरा एक पसन्दीदा अरबी गायक भी आया था. 2008 के बाद से मुझे हमेशा उस उत्सव में मंच पर और परदे के पीछे मदद करने की अनुमति मिल गई. 2010 में, जब मैं वहां था, तो मुझे 'Bharat Verein Majlis' के एक food stall पर एक socket देने के लिए भेजा गया. मैं ने booth पर जा कर पूछा कि क्या वे भारतीय हैं. उन्होंने हंस कर कहा कि, बिल्कुल, वे सिर से पैर तक भारतीय हैं. मैं ने मज़ाक में कहा कि मैं Bollywood गाने गा सकता हूं. तो वे सभी हंस पड़े. एक ने गम्भीरता से कहा कि ठीक है एक गाना गा कर सुनाओ. मैं ने सोचा, अरे, मैं ने यह क्या कह दिया. हर कोई इंतज़ार कर रहा था तो मैं ने 'कुछ कुछ होता है' गाने की कुछ पंक्तियां गा कर सुना दीं. उन लोगों के मुंह खुले के खुले रह गए और वे जयजयकार करने लगे. वे मुझे तम्बू के पीछे ले गए और मुझे भारतीय भोजन और चावल की एक बड़ी थाली खाने को दी. साथ में कहा कि बेटा तुम October में दुर्गा पूजा में आ रहे हो और गा रहे हो. मैं ने कहा ठीक है मैं आऊंगा. October आने तक उन्होंने मुझे कम से कम 10 बार phone किया. मैं ने उस दिन के बाद ख़ुशी-ख़ुशी rehearsal करना और शाहरुख खान की नई films के गाने सुनना शुरू कर दिया. मैं बहुत उत्साहित और ख़ुश था.

अन्तत शनिवार, 16 October 2010 का वह दिन आया. सभा-भवन में मेरा खुले दिल से स्वागत हुआ. मैं ने वहां अपनी rehearsal शुरू की. अचानक वहां 20 से अधिक लोग प्रकट हो गए जो कि रसोई या hall को तैयार करने वाले थे. मैं rehearsal के दौरान थोड़ा गुस्से में था क्योंकि sound system गायन के लिए उपयुक्त नहीं था. पर मैं ने अपनी भावनाओं को प्रकट नहीं होने दिया. दो घंटे बाद लगभग 200 मेहमान उपस्थित हो गए और show शुरू हुआ. मेरी तीसरी बारी थी. मैं ने intro के तौर पर परदे के पीछे से गाना शुरू किया. जब पर्दा धीरे से खुला, तो सब लोग जयजयकार करते और ताली बजाते हुए खड़े हो गए. जब कि उस समय मुझे कोई नहीं जानता था. मैं ने 2 गाने गाए और चला गया. मेरे बाद थोड़ा break था. मैं थोड़ा पीछे हट गया और show जारी रहा. मुझे अन्त में फिर से 3 और गीत गाने थे. सभी लोग साथ में गाने लगे. लेकिन जब moderator ने अन्त में कहा कि मैं भारतीय नहीं, बल्कि Greek हूं, तो कमरे में सन्नाटा छा गया. वे सब खड़े हो गए और इतनी जोर से तालियां बजाईं कि उनकी आवाज़ें समझ में आनी बन्द हो गईं. वे सब ख़ुश थे और मेरे साथ तस्वीरें लेने लगे. 50 से ज़्यादा लोगों ने मेरे साथ तस्वीरें लीं और autograph लेना चाहा. यह कुछ खास था. मैं बहुत ख़ुश था कि मैं आखिरकार एक भारतीय party में गाने में कामयाब हो गया हूं. मुझे लगने लगा कि मैं एक छोटा star बन गया हूं.

शाम हो चुकी थी. मेरे घर जाने से पहले दिब्येंदु नामक एक आयोजक ने मुझे नवंबर में दीवाली के लिए आमन्त्रित किया. उनके इतना कहने के बाद मैं ने मन ही मन में सोचा कि अब मामला गम्भीर हो रहा है. अगले सोमवार को मैं Media Markt गया और कुछ नई CDs की तलाश करने लगा जो मेरे पास नहीं थी. मुझे कुछ audio CDs के अलावा एक दिलचस्प DVD मिली, जिस का शीर्षक था 'The Inner and Outer World of Shah Rukh Khan'. इस में मैं ने देखा कि शाहरुख खान ने अपने violin के साथ 'सूरज हुआ मद्धम' गाने की शुरुआत की और फिर दर्शकों के सामने गए. मैं ने सोचा कि मैं भी इसी तरह से कुछ करूं. मैं ने  मंच स्थापित करने की योजना बनानी शुरू कर दी. मेरे पास मेरे दादा और पिता से मिले light and sound system के कुछ उपकरण थे क्योंकि वे भी संगीतकार हैं. पर मैं ने इसके अलावा भी बहुत सामान ख़रीदा. मैं ने PC पर कम से कम 3 घंटे बैठ कर मंच का नक्शा और योजना बनाई. पहले भाग में क्या पहनूं, दूसरे भाग में क्या पहनूं, spotlights में कौन से रंग होने चाहिए आदि हर चीज़ की योजना बनाई. नवंबर उम्मीद से जल्दी आ गया.

कार्यक्रम से एक दिन पहले मैं headlights, loudspeaker और अन्य सारा सामान एक trailor में डाल कर कार्यक्रम स्थल पर चला गया और रात एक बजे तक मंच पर सारा सामान स्थापित करता रहा. मैं चाहता था कि मंच पर हर चीज़ उत्तम हो, कोई cable नज़र नहीं आनी चाहिए. आयोजकों ने जब मंच देखा तो वे मुग्ध हो गए. उन्होंने कहा कि इससे पहले उन्होंने ऐसा तैयार किया हुआ मंच नहीं देखा था. वे बहुत ख़ुश और उत्साहित थे कि मैं वहां था. बाहर कड़ाके की ठण्ड थी और बर्फ़बारी हो रही थी. इस बार hall में 300 लोग थे, क्योंकि दीवाली भारत में एक बहुत बड़ा त्योहार है. show शुरू हुआ. कुछ dance और comedy items के बाद मेरे मैं ने कुछ गाने प्रस्तुत किए. दर्शकों में कई अन्य आयोजक भी थे जो show के बाद मुझे book करना चाहते थे. उस के बाद मुझे Frankfurt, Cologne, Austria और यहां तक कि London में भी प्रदर्शन करने का मौका मिला. साथ ही Stuttgart में भारतीय film समारोह में भी प्रदर्शन करने का मौका मिला. इस लिए 2010 के बाद हर सप्ताहांत पर मेरा एक संगीत कार्यक्रम या प्रदर्शन होता था.

दुर्भाग्य से अच्छे लोगों के साथ कुछ ईर्ष्यालु और झूठे लोग भी होते हैं. कुछ club ऐसे भी हैं जो सिर्फ़ अपने फ़ायदे के बारे में सोचते हैं. उदाहरण के लिए एक आयोजक ने एक बार कहा कि कृपया रंगीन रौशनी का उपयोग ना करें, वे दर्शकों को परेशान करती हैं. एक बार तो मुझ पर लगभग मुकदमा कर दिया गया था क्योंकि मैं ने stage कोहरे का इस्तेमाल किया था. किसी ने show के बाद शिकायत की थी कि उसे कोहरे के कारण उस की आंखों में संक्रमण हो गया. हालांकि यह कोहरा दर्शकों तक नहीं पहुंचा था. एक बार मुझे phone पर धमकी दी गई थी कि मुझे अब Bollywood गाने नहीं गाने चाहिए. अगर मैं ने फिर से Bollywood गीत गाए तो मुझे गोली मार दी जाएगी. तब से, मेरे चाचा सुरक्षा-कर्मी की तरह हर संगीत समारोह में मेरे साथ जाने लगे और मेरी रक्षा करने लगे. एक बार Stuttgart में मेरा एक संगीत कार्यक्रम था तो एक पागल आदमी मंच पर आया. वह मुझसे microphone छीन कर दर्शकों को कहने लगा कि देखो, यह वास्तव में गा नहीं रहा है बल्कि यह उदित नारायण की आवाज है. मैं थोड़ा हंसा क्योंकि संगीत जारी था (Karaoke) पर गाने की आवाज नहीं आ रही थी. मैं ने गाना जारी रखा तो वह पागल आदमी फिर से मंच की पीछे से एक कैञ्ची के साथ प्रकट हुआ. मेरे चाचा ने उसे देख लिया और कूद कर उसे फर्श पर दबोच लिया. वह व्यक्ति चिल्लाने लगा कि मैं तुम्हारी cable काट दूंगा. पता चला कि वह एक लड़की का पिता था जो कार्यक्रम में नाच रही थी पर किसी का ध्यान उस की ओर नहीं जा रहा था. उसने यहां तक ​​कहा कि तुम ठग हो, जब तुम्हें जब गाना होता है तो तुम्हारे चाचा बटन दबाते हैं. ऐसी और भी बहुत सी घटनाएं हैं.

अब मैं अपने सब से पसन्दीदा गायक उदित नारायण सहित अभिजीत भट्टाचार्य, कुमार शानू और शान के 50 से अधिक गाने गाता हूं. मैं ने 40 गाने record कर के YouTube पर upload किए हैं. आप मुझसे 2 CD भी प्राप्त कर सकते हैं. भगवान जाने कि मैं हिन्दी गीत क्यों गाता हूं. मैं अन्य भाषाओं में भी गाता हूं लेकिन हिन्दी में कुछ खास है. मैं एक हिन्दी गायक के रूप में अपना भविष्य बनाना चाहता हूं, संगीत कार्यक्रम करना चाहता हूं. शायद पृष्ठ-भूमि में एक छोटे से band के साथ और दाएं और बाएं कुछ नृत्य numbers के साथ.

दुर्भाग्य से कुछ ऐसे लोग भी हैं जो वादे करते हैं कि मैं तुम्हें बहुत बड़ा बना दूंगा, तुम्हें भारत ले जाऊंगा या तुम्हें TV पर दिखाऊंगा. लेकिन दुर्भाग्य से ये हमेशा खोखले वादे होते हैं. मैं कई बार TV पर और अखबारों में आ चुका हूं. पर अब Corona महामारी के दो साल बाद बहुत कुछ बदल गया है. अब मेरे पास कोई Bollywood कार्यक्रम नहीं है. फिर भी, मैं हमेशा नए गाने सीखने और हर दिन घर पर rehearsal करने की कोशिश करता हूं. भारतीय दिलदार और उदार लोग हैं. इतने लम्बे समय के बाद मैं खुद को लगभग एक भारतीय जैसा महसूस कर रहा हूं.

गुरुवार, 28 दिसंबर 2023

एक आनन्त यादगार

The Eternal Memory (मूल शीर्षक: La Memoria Infinita, German शीर्षक: Die Unendliche Erinnerung) 2023 में Maite Alberdi द्वारा निर्देशित Chile का एक वृत्तचित्र  है. यह फिल्म Chile के पत्रकार Augusto Góngora (02.01.1952 - 19.05.2023) पर केन्द्रित है, जिन्हें Alzheimer रोग हो गया था. बढ़ती बीमारी और रोजमर्रा की ज़िन्दगी में उतार-चढ़ाव को उनकी पत्नी Paulina Urrutia (*15.01.1969) ने video में दर्ज किया. 1983 में जन्मी निर्देशक Maite Alberdi अपनी फिल्म "The Mole - A Detective in the Nursing Home" (2020) के लिए Oscar के लिए नामांकित होने वाली पहली Chile वासी थीं. Augusto Chile के सब से प्रमुख सांस्कृतिक पत्रकारों और television प्रस्तुतकर्ताओं में से एक थे. अपने career के दौरान Augusto ने Pinochet शासन के अपराधों पर विस्तार से लिखा और यह सुनिश्चित किया कि Pinochet तानाशाही के अत्याचारों को भुलाया ना जाए. Paulina एक मंच, TV और सिनेमा अभिनेत्री हैं जिन्होंने अपने कलात्मक काम के अलावा 2006 से 2010 तक Mitchell Bachelet की पहली सरकार में संस्कृति मन्त्री के रूप में भी काम किया. फिल्म का premier 22 January 2023 को Sundance Film Festival में हुआ जहां इसे Grand Jury पुरस्कार मिला. European premier 18 February, 2023 को Berlin अन्तर-राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में हुआ, जहां इसे panorama अनुभाग में आमन्त्रित किया गया था. premier के कुछ महीनों बाद Augusto की मृत्यु हो गई. यह फिल्म Germany के सिनेमा में 28 December, 2023 को release हुई, जिसे Piffl Medien द्वारा वितरित किया गया. Rotten Tomatoes website के अनुसार यह फिल्म एक गहरी राजनीतिक पृष्ठ-भूमि के खिलाफ़ एक गहरी व्यक्तिगत कहानी है और प्रेम और स्मृति की शक्ति का एक मार्मिक प्रमाण है.

Augusto Góngora और Paulina Urrutia सन 2000 से एक-दूसरे के साथ रह रहे थे. वे लम्बे समय तक अविवाहित रहे. 2015 में Augusto के Alzheimer रोग के बारे में पता चला. Paulina तभी से उनकी देख-भाल कर रही थीं. Augusto की बीमारी का पता चलने के बाद फिल्म निर्माता Alberdi द्वारा उनके निजी जीवन को फिल्माने का निर्णय सोच समझ कर और Augusto की सहमति से लिया गया. 2020 में जा कर उन्होंने शादी की. Augusto ने जिस तरह अपने पत्रकारिता कार्य में अथक रूप से यह सुनिश्चित किया कि Chile में राज्य द्वारा किया गया अन्याय बख्शा ना जाए और सामूहिक रूप से उस का दमन किया जाए, वैसे ही उसने अपनी पत्नी और Alberdi के साथ मिल कर अपनी बीमारी के कारण अपनी शारीरिक और मानसिक शक्ति में गिरावट के दस्तावेज़ीकरण में योगदान दिया. फिल्म में जहां दम्पत्ति को हर दिन बीमारी के कारण उत्पन्न होने वाली कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, वहीं ही वे एक-दूसरे के प्रति कोमल स्नेह दिखाते हैं और उनकी हास्य की भावना उन्हें एक साथ रखती है.

प्यार के कबूलनामे में जोड़े एक-दूसरे से अच्छे और बुरे समय में शाश्वत वफ़ादारी की शपथ लेते हैं. लेकिन उस समय बहुत से लोग नहीं जानते कि बुरा समय आने का वास्तव में क्या मतलब होता है. Augusto और Paulina 20 वर्षों से एक साथ हैं, उनके दो बच्चे हैं और उन्होंने एक घर बनाया है. लेकिन Augusto की बीमारी के कारण यह सब गायब होने का खतरा है. कई अन्य लोगों की तरह Augusto भी तेज़ी से अपनी याददाश्त खो रहा है. अब वह नहीं जानता कि वह कौन है, कहां है, और अब दूसरों को नहीं पहचानता. लेकिन फिल्म में बीमारी के बारे में बहुत कम दिखाया गया है. Alzheimer या dementia के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है, doctors के साथ बीमारी के बारे में किसी बात-चीत के दृश्य नहीं दिखाए गए हैं. वास्तव में Alzheimer शब्द का उल्लेख भी फिल्म काफ़ी देर बाद किया गया है. और बाद में भी वे दोनों इस के बारे में बहुत कम बात करते हैं. इस की बजाय दर्शक उनके विवाह, उनके अतीत और वर्तमान के दृश्य देखते हैं. फिल्म में उनके युवा दिनों के, और बच्चों के साथ अनेक video दिखए गए हैं. Augusto का पेशेवर अतीत भी दिखाया गया है जब वे Pinochet तानाशाही के विरुद्ध एक पत्रकार के रूप में काम कर रहे थे.

Augusto की यादें तेज़ी से धुंधली होती जा रही हैं. Paulina को लगातार उसे याद दिलाना पड़ता है कि वह कौन है. कभी-कभी जब वह अपना प्रतिबिम्ब देखता है तो वह खुद को नहीं पहचान पाता है या अपनी किताबों से घिरा हुआ महसूस करता है जैसे कि उससे सब कुछ छीन लिया गया हो. यह फिल्म बताती है कि इस बीमारी का क्या मतलब है और इस के साथ होने वाले नुकसान क्या हैं. कुछ चीज़ें इतनी करीब होती हैं कि उनसे जुड़े रहना मुश्किल हो जाता है. फिर भी निर्देशक Maite Alberdi ने अनेक खूबसूरत और कोमल क्षणों को इस में शामिल किया है. जब वे दोनों एक साथ नृत्य करते हैं या मज़ाक करते हैं तो दर्शकों को लगता है कि सब कुछ ठीक हो जाएगा. कि दोनों का ना केवल एक अतीत है, बल्कि एक भविष्य भी है. यह फिल्म यह जानती है कि दर्शकों में भावनाएं कैसे जगाई जाती हैं. इस में दर्शकों के साथ किसी भी तरह का हेर फेर करने की कोशिश नहीं की गई. दृश्य स्वयं बोलते हैं. "Gone with the Wind" (1939) या "Titanic" (1997) जैसी महान प्रेम कहानियां अक्सर महाकाव्य विस्तार में बताई जाती हैं, जिन में 1000 से अधिक की चुनौतीपूर्ण पृष्ठ संख्या और तीन घंटे से अधिक का समय होता है. लेकिन इस फिल्म के संक्षिप्त 85 minute इतनी गहराई और एहसास से भरे हुए हैं कि फिल्म के याद रह जाने की तीव्रता किसी भी किताब या किसी भी सिनेमाई महाकाव्य को मात दे सकती है.

एक ओर यह फिल्म बेहद दुखद है क्योंकि यह हमें अवगत कराती है कि सब कुछ क्षण-भंगुर है. दूसरी ओर, यह हमें बहुत आशा भी देता है कि भले ही हमारी अपनी यादें उम्र के साथ गायब हो जाएं, शरीर किसी बिन्दु पर हार मान ले, लेकिन हमारे कार्यों के निशान बने रहेंगे. पुराने संग्रह footage में हम Augusto को एक पत्रकार के रूप में duty पर और Paulina को प्रदर्शन और पुरस्कार प्रदान करते हुए देखते हैं. 1990 के दशक के उत्तरार्ध के home video clip जोड़े की निजी ख़ुशी को दर्शाते हैं. ये सब बेहद मार्मिक है. हालांकि वर्तमान दृश्य सब से प्रभावशाली हैं जिन से यह स्पष्ट होता है कि दो दशकों के बाद भी यह प्यार कम नहीं हुआ है. Paulina Augusto को नहाने और दाढी बनाने में मदद करती है. वे दोनों sun hat पहन कर सैर करते हैं, वह उसे किताबें पढ़ कर सुनाती है, वे दोनों रंग-मंच पर अभ्यास करते हैं. जब Paulina Augusto को अपनी पहली date के बारे में बताती है, तो वे दोनों एक-दूसरे के साथ बात-चीत में इतने flirty होते हैं, मानो वे सीधे पहली बार प्यार में पड़ने के उस रोमांचक एहसास पर वापस जा सकते हों. एक सुबह बिस्तर पर जागते ही Augusto Paulina से कहते हैं, ''आप से मिल कर ख़ुशी हुई.'' Paulina तब धैर्य-पूर्वक उसे सब कुछ याद दिलाती है, कि यह उन दोनों का कमरा है, कि वे एक विवाहित जोड़े हैं. इन दो लोगों को Alberdi के अन्तरंग लेकिन हमेशा सम्मान-जनक दृष्टि-कोण से देखना अकथनीय रूप से महान और बेहद प्रभावशाली है. हम उन दोनों को लम्बे समय तक याद रखेंगे, यह निश्चित है. Augusto एक बार फिल्म में कहते हैं कि "स्मृति ही पहचान है". निर्देशक Frederick Nietzsche का उद्धृत करते हुए कहती हैं कि "केवल वही चीज़ आपकी स्मृति में बनी रहती है जो आपको दुख देना बन्द नहीं करती." भूमिगत युग के एक मित्र की मृत्यु का दर्द, जिस का गला Pinochet के गुर्गों ने काट दिया था, अभी भी Augusto की हड्डियों में है, जिसे याद कर के वह अपनी छाती पीटता है.

बुधवार, 27 दिसंबर 2023

PFAS - अनन्त काल के लिए ज़हर

PFAS नामक रसायण के करीब दस हज़ार यौगिक हमारे रोजमर्रा जीवन में काम आने वाली सैंकड़ों वस्तुओं में पाए जाते हैं. करीब 80 साल पहले अविष्कृत किए गए इस रसायन ने जहां हमारे जीवन को बहुत आसान बनाया है, वहीं यह बहुत ज़हरीला और खतरनाक भी है. यहां तक कि वस्तुओं की packings पर इसका उल्लेख करना भी कभी ज़रूरी नहीं समझा गया. लेकिन अब European संघ इस रसायन पर प्रतिबन्ध लगाने की योजना बना रहा है. पर हमें और हमारे समाज को इसकी क्या कीमत चुकानी होगी? सैंकड़ों उद्योगों पर इसका असर पड़ेगा. यहां तक कि पर्यावरण संरक्षण के लिए और जीवाश्म ईंधनों से छुटकारा पाने के लिए विकसित की जा रही भविष्यात्मक तकनीकों पर भी इसका असर पड़ेगा.

PFAS का मतलब Per- और Polyfluorinated Alkyl Substances है. ये carbon के अणु हैं जिन में एक या अधिक hydrogen परमाणुओं को Fluorine परमाणुओं द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है. Carbon और Fluorine के यौगिक प्रकाश, जीवाणुओं आदि से विघटित नहीं होते या बहुत धीमी गति से विघटित होते हैं. इस लिए इनका उपयोग हमारी रोजमर्रा की वस्तुओं को पानी, गन्दगी, grease, ठण्ड और गर्मी से बचाने लिए किया जाता है. लेकिन इसका मतलब यह भी है कि इन्हें एक बार पर्यावरण में छोड़े जाने के बाद हम उनसे छुटकारा नहीं पा सकते. PFAS हवा और जल चक्र द्वारा हमारी खाद्य श्रृंखलाओं में भी जमा हो सकता है और भू-जल जैसे पेय-जल स्रोतों तक पहुंच सकता है. PFAS अब दुनिया भर में पानी में पाया जाता हैं. हवा और भूमि के अलावा यह मानव रक्त serum में भी हो सकता है और स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकता है. इस पदार्थ से पर्यावरण और जीवित प्राणियों को होने वाली दीर्घ-कालिक क्षति अभी भी काफ़ी हद तक अज्ञात है. लेकिन एक बात निश्चित है: भावी पीढ़ियों पर इसका बहुत असर पड़ने वाला है. भूमि का नवीकरण जटिल, महंगा और केवल कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में ही सम्भव है.

इन कृत्रिम रासायनिक मिश्रणों का चलन लगभग 80 साल पहले USA में DuPont और 3M companies के कारखानों में शुरू हुआ था. वहां Fluorine युक्त Teflon pans और waterproofing spray ने सनसनी पैदा कर दी. आज शायद ही कोई उद्योग इनके बिना चल सकता है. वे cookware, पानी में ना भीगने वाली jackets, कालीन, furniture, सौंदर्य प्रसाधन वस्तुएं, अग्निशमन foam, fast food packaging, contact lens, tennis racket, ski wax और dental floss में पाए जाते हैं. वे pizza box को पिलपिला होने से बचाते हैं, भोजन को non-stick pan पर चिपकने से बचाते हैं, और weather jacket को बारिश में गीला होने से बचाते हैं. बहुत सारी औद्योगिक वस्तुओं और प्रक्रियाओं में भी उनका इस्तेमाल होता है. ईंधन cell, semiconductors, electric कारें, चिकित्सा प्रौद्योगिकी में dialysis tubes या कृत्रिम हृदय valves के लिए इनका उपयोग होता है.

PFAS द्वारा उत्पन्न खतरे को लम्बे समय से कम कर के आंका गया है और labeling की कोई आवश्यकता नहीं समझी गई है. लेकिन अन्तर-राष्ट्रीय अध्ययन और विष विज्ञान सम्बन्धी reports अब सम्भावित खतरों का खुलासा कर रही हैं. विशेषज्ञों के अनुसार PFAS मनुष्यों में thyroid, lever और प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है, harmonal सन्तुलन को प्रभावित करता है, शुक्राणुओं की संख्या कम करता है, गर्भ में बच्चे को नुकसान पहुंचाता है और मधुमेह का खतरा बढ़ाता है. कुछ को cancer-कारी माना जाता है. बच्चों में ये टीकाकरण के प्रभाव को कमज़ोर कर देते हैं. लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि किसी जादुई अविष्कार के नुकसान बाद में पता चलें. प्रारम्भ में किसी को नहीं पता था कि CFC प्रणोदक से Ozone छिद्र बन जाएंगे, या asbestos से cancer हो सकता है. फिर भी Germany में पीने के पानी में PFAS की निचली सीमा 2026 से लागू होगी. Denmark में यह पहले से लागू है. Europe में 17,000 से अधिक जगहें PFAS से दूषित हैं, जिन में Germany की 1,500 जगहें भी शामिल हैं. इस में में लगभग 300 जगहों पर प्रदूषण बहुत गम्भीर है. यह परीक्षण Europe के 18 media भागीदारों के सहयोग से "forever pollution project" नामक शोध (foreverpollution.eu) का परिणाम है. ये अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्र अधिकतर हवाई अड्डे, रासायनिक स्थल और अग्नि स्थल हैं. Düsseldorf शहर के हवाई अड्डे पर अग्निशमन foam से PFAS भू-जल के माध्यम से Rhine नदी में प्रवाहित हुआ. Bavaria के Gendorf chemical park में PFAS ने निकास हवा और अपशिष्ट जल के माध्यम से पर्यावरण में प्रवेश किया. Rastatt शहर में PFAS से दूषित कागज़ के कीचड को खाद के साथ मिला दिया गया और उर्वरक के रूप में वितरित कर दिया गया, जिस से फसलों का नुकसान हुआ और कुओं को बन्द करना पड़ा.

PFAS सिर्फ़ एक European समस्या नहीं है: USA में 3M और Teflon pan निर्माता DuPont PFAS से जुड़े पर्यावरण घोटालों में शामिल थे. उन्हें भारी मुआवज़ा देना पड़ा. यह मुद्दा अब Europe की राजनीति में भी गर्मा रहा है. संघीय पर्यावरण agency और Netherland, Denmark, Sweden और Norway के अधिकारियों ने European रसायन agency को क्रमिक प्रतिबन्ध के लिए एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया है. सरल भाषा में European संघ 10,000 से अधिक रसायनों के इस पदार्थ समूह पर व्यापक प्रतिबन्ध की योजना बना रहा है, जो आज तक अद्वितीय होगा. प्रतिबन्ध के अलावा इस बात का भी ध्यान रखना पड़ेगा कि उद्योग PFAS से बचने के लिए किसी अन्य हानिकारक वस्तुओं का उपयोग ना करने लग जाएं, क्योंकि इस के उचित विकल्प ढूंढने मुश्किल होंगे. उदाहरण के लिए जब 2020 में दुकानों पर receipt printers में इस्तेमाल होने वाले thermal paper के रसायन Bisphenol A पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया तो उद्योग ने सन्दिग्ध Bisphenol S को इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. हर प्रतिबन्ध को पूरी तरह क्रियांवित करने में कई साल लगते हैं. इस लिए PFAS अभी दशकों तक पर्यावरण में रहेगा. वैसे भी PFAS की श्रेणी में हज़ारों यौगिक आते हैं, जिन में से अब तक केवल लगभग एक दर्जन PFAS पर शोध किया गया है. चार प्रतिबन्धित हैं: PFOS, PFOA, PFHxS और C9-21 PFCAs. इस लिए दुनिया का कोई भी प्राधिकरण इस सारे समूह को केवल कुछ सालों में प्रयावरण से नहीं हटा सकता. फिर भी कुछ उद्योग Fluorine मुक्त उत्पादों पर परीक्षण कर रहे हैं. यह निकास, जिसे "FLEXIT" का नाम दिया गया है, कठिन है, लेकिन सम्भव है. प्रतिबन्ध से विज्ञान और start-up को विकल्पों पर शोध करने का एक अवसर भी मिलता है.

मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

पुराने mobile phones में दुर्लभ धातुएं

Germany में वर्तमान में लगभग 21 करोड़ पुराने cell phones घरों में बेकार पड़े हैं. cell phones में बहुत सारी मूल्यवान धातुएं होती हैं जिन का पुनर्चक्रण किया जा सकता है. इन अप्रयुक्त उपकरणों में 3356 टन लोहा, 1947 टन silicon, 1388 टन ताम्बा, 546 टन Nickel और 3.6 टन सोना, 400 kg Palladium, 100 kg Platinum शामिल हैं. साथ ही Neodymium जैसी कई दुर्लभ और विशेष धातुएं भी शामिल होती हैं. वे housing में, touchscreen में, screw, circuit board, cable, battery और speaker में, camera और vibration motor में मौजूद होती हैं. कुल मिला कर इन सामग्रियों की कीमत लगभग 24 करोड़ Euro है. पहली नज़र में यह बहुत ज़्यादा लगता है, लेकिन प्रति cell phone में केवल एक Euro से थोड़ा अधिक की धातुएं हो सकती हैं. फिर भी इनका पुनर्चक्रण किया जाना चाहिए. क्योंकि पुनर्चक्रण से खनन की तुलना में काफ़ी कम greenhouse gas उत्सर्जित होती है. और चूंकि Germany में अब शायद ही किसी धातु का खनन किया जाता है, इस लिए ये पुराने cell phones और भी मूल्यवान हो जाते हैं. एक टन पुराने cell phone में एक टन अयस्क की तुलना में लगभग 40 गुना अधिक सोना होता है; एक cell phone में 0.017 ग्राम सोने का मूल्य लगभग 80 cent है. विशुद्ध रूप से गणितीय शब्दों में Germany के पुराने cell phone से पुनर्नवीनीकृत धातुएं दस वर्षों तक नए smartphones बनाने के लिए पर्याप्त होंगी. लेकिन ऐसा करने के लिए सब से पहले उन्हें पुराने device से बाहर निकालना होगा. तथा-कथित एकीकृत smelters से लगभग 20 धातुएं निकाली जा सकती हैं. लेकिन Europe में ऐसे smelters अभी गिने चुने ही हैं. सरल प्रणालियों में electrolysis का उपयोग कर के केवल ताम्बा, सोना, चांदी, Palladium, Platinum और शायद Nickel जैसी कुछ मूल्यवान धातुएं निकाली जा सकती हैं. इस तरह 90% से भी अधिक मूल्य की धातुएं दोबारा प्राप्त की जा सकती हैं. पुनर्चक्रण की दक्षता को और बढ़ाने के लिए cell phones को अन्य छोटे विद्युत उपकरणों से अलग कर के संसाधित करना होगा. लेकिन इसे सार्थक बनाने के लिए सौंपे गए पुराने cell phone की संख्या में वृद्धि करनी होगी.

लेकिन क्या पुनर्नवीनीकृत कच्चे माल का वास्तव में दोबारा उपयोग किया जाता है? अधिक से अधिक cell phone निर्माता पर्यावरण तटस्थ बनने और पुन: उपयोग की जाने वाली सामग्रियों के अनुपात को बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं. उदाहरण के लिए, Apple पहले से ही iPhone 15 के नवीनतम model की battery में 100% पुनर्नवीनीकृत cobalt, charging port में सोना, solder और PCB coating में सोना और टिन का उपयोग करता है. cell phone के चुम्बक में केवल पुनर्चक्रित दुर्लभ धातुओं का उपयोग किया जाता है. कई उपकरणों में housing पूरी तरह से पुन: उपयोग किए गए aluminium से बनी होती है. Apple दुनिया के सब से बड़े smartphone निर्माताओं में से एक है और उस की बाज़ार हिस्सेदारी लगभग 20% है. 2022 में दुनिया भर में 40,000 टन से अधिक Apple उपकरणों का पुनर्चक्रण किया गया. विशेष रूप से design किए गए Daisy नामक robot iPhone को अलग करते हैं. ऐसा एक robot Austin (Texas) में है और एक Breda (Netherland) में. एक Daisy robot प्रति घंटे 200 iPhones को अलग कर सकता है, यानि एक साल में 12 लाख. इस तरह phones को तोड़ कर धातुएं निकालने की बजाए इस तरह के प्रारम्भिक कार्य से बेहतर recycling हो सकती है. Daisy द्वारा एकत्रित किए गए एक टन motherboard, तारों और camera module से Apple के recycling partner 2,000 टन से अधिक खनन किए गए अयस्कों के समान ही सोना और ताम्बा पुनर्प्राप्त कर सकते हैं. एक अनुमान के अनुसार 2019 से ले कर batteries से 11 टन से भी अधिक cobalt निकाला जा चुका है. आगे के विकास चरणों में निराकरण machines दुर्लभ धातुओं को बेहतर ढंग से पुनर्प्राप्त करने में मदद करेंगी. लेकिन अभी भी Daisy का उपयोग क्षमता के अनुसार नहीं किया जा रहा है, क्योंकि सभी ग्राहक iPhones को वापस नहीं कर रहे हैं. Germany में phones की return दर लगभग 45% है जो European संघ द्वारा निर्दिष्ट 65% से काफ़ी कम है. 

इस के अलावा ताम्बा, लोहा, steel और aluminium के उत्पादन के लिए बड़ी मात्रा में scrap का आयात किया जाता है. recycling कीमत में उतार-चढ़ाव, वितरण कठिनाइयों और चीन पर निर्भरता के खिलाफ़ एक महत्वपूर्ण तरीका है. तथा-कथित खनिज कच्चे माल के लिए German उद्योग काफ़ी हद तक सुदूर पूर्व पर निर्भर है. Germany में दुर्लभ धातुएं के आयात का दो तिहाई अकेले चीन से आता है. दुनिया भर में सभी aluminium और कच्चे इस्पात का आधा हिस्सा वहीं से आता है. लगातार पुनर्चक्रण कम से कम इन आर्थिक निर्भरताओं को कम कर सकता है.

एक smartphone में यह कच्चे माल होता है: 25% धातुएं (15% ताम्बा, 3% लोहा, 3% aluminium, 2% Nickel, 1% टिन, 1% अन्य दुर्लभ धातुएं और दुर्लभ मृदाएं), 16% कांच और चीनी मिट्टी की चीज़ें, 56% plastic, 3% अन्य.